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Patrika Explainer : जानिए क्या है असम-मिजोरम सीमा विवाद का इतिहास और इससे जुड़ी कहानियां

Patrika Explainer : नई दिल्ली। एक आम इंसान के जीवन में 50-60 वर्ष बहुत ज्यादा होते हैं परन्तु किसी देश या राज्य जितने बड़े भूखंड के इतिहास में इतना समय तो पलक झपकते गुजर जाता है। असम और मिजोरम में हाल ही में हुई झड़प भी पिछले कुछ दिनों या वर्षों की लड़ाई नहीं है वरन इसके पीछे एक लंबी कहानी छिपी हुई है और इस मुद्दे को लेकर पहले भी कई बार विवाद हो चुके हैं। वास्तव में देखा जाए तो इसकी नींव तो देश की आजादी से पहले यानि आज से लगभग 146 वर्ष पूर्व 1875 में ही अंग्रेजों द्वारा रखी जा चुकी थी।आइए, असम और इसके अपने सहयोगी राज्यों के साथ चल रहे सीमा विवादों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

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प्राचीन पुराणों में भी है उल्लेख
देश के पूर्वोत्तर राज्य असम का सर्वप्रथम उल्लेख प्राचीन हिंदू पुराणों में प्राग्ज्योतिषपुर अथवा कामरूप के नाम से मिलता है। शिव महापुराण में सती दहन की कथा का वर्णन है। इस कथा के अनुसार सती की मृत्यु के बाद जब शिव सती के शव को लेकर भटक रहे थे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई टुकड़ों में विभक्त कर दिया था। इन्हीं में से एक अंग तत्कालीन प्राग्ज्योतिषपुर की नीलाचल पहाड़ियों में गिरा जिसे आज कामाख्या कहा जाता है और वहां स्थापित कामाख्या मंदिर में भगवती आद्यशक्ति की पूजा करने के लिए देश-विदेश के श्रद्धालु आते हैं।

इस घटना के बाद भगवान शिव तपस्या में लीन हो गए। उनकी तपस्या भंग करने के लिए कामदेव ने उन पर अपने पुष्पबाणों का संधान किया। फलस्वरूप शिव की तपस्या भंग हो गई और उन्होंने कामदेव को भस्म करने के लिए अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। जिस स्थान पर यह घटना हुई, उसे कामरूप कहा गया।

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गुप्त साम्राज्य का भी हिस्सा था असम
हरियाली से आच्छादित पहाड़ियों और ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों से घिरा कामरूप किसी समय आदिवासियों का प्रमुख निवासस्थान था। गुप्त वंश के महान शासक समुद्रगुप्त के समय यह गुप्त साम्राज्य का हिस्सा था। माना जाता है कि 1228 ईस्वी में यहां पर अहोम जाति के लोग आए तथा उन्होंने अगले छह सौ वर्षों तक राज्य की सत्ता में अपना एकाधिकार बनाए रखा। हालांकि बीच-बीच में चीन तथा अन्य क्षेत्रों से भी यहां पर लोग आते रहें और यही की सभ्यता में घुलते रहें।

उन्नीसवीं सदी में अंग्रेजों ने असम को माना एक राज्य
उन्नीसवीं सदी में जब पूरा भारत देश अंग्रेजों के अधीन जा रहा था, उसी समय वर्ष 1832 में कछार तथा 1835 में जैंतिया हिल्स पर भी अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया। वर्ष 1874 में ब्रिटिश सरकार ने इस पूरे क्षेत्र को नया राज्य मानते हुए शिलांग को इसकी राजधानी घोषित किया। उस समय पहली बार इस क्षेत्र को भारत के एक राज्य के रूप में देखा गया।

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बर्मा के साथ मिलना चाहते थे लुशाई हिल्स के निवासी
9 अप्रैल 1946 को मिजो कॉमन पीपल्स यूनियन का गठन किया गया था। इस संगठन का काम मिजो लोगों के हितों की रक्षा करना था। बाद में इस संगठन को मिजो यूनियन भी कहा जाने लगा। आजादी के बाद एक अन्य पार्टी यूनाइटेड मिजो फ्रीडम का गठन किया गया जो लुशाई हिल्स को बर्मा में मिलाना चाहती थी परन्तु ऐसा नहीं हो सका। उन्हें स्वतंत्र भारत के एक पूर्ण राज्य असम का ही अभिन्न अंग माना गया।

मिजोरम 1972 तक असम का ही एक हिस्सा था। वर्ष 1972 में इसे एक यूनियन टेरिटरी घोषित किया गया जिसे वर्ष 1987 में एक पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया। इसके बाद से मिजोरम और असम के मध्य कई बार विवाद हो चुके हैं।

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असम भी कई हिस्सों में बंटा
देश की आजादी के बाद असम को एक अलग राज्य के रूप में मान्यता मिली। परन्तु इसके बाद से असम के मूल रूप में परिवर्तन होना शुरू हो गया। सबसे पहले वर्ष 1951 में उत्तरी कामरूप को भूटान को दे दिया गया। वर्ष 1972 में असम की राजधानी शिलॉन्ग को मेघालय की राजधानी घोषित किया गया और गुवाहाटी को असम की राजधानी बनाया गया। इसके बाद मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम को अलग किया गया।

क्या है असम और मिजोरम का सीमा विवाद
वर्तमान असम और मिजोरम के बीच की सीमा लगभग 165 किलोमीटर लंबी है। आज जिस भूभाग को मिजोरम कहा जाता है, उसे प्राचीन समय में लुशाई हिल्स के नाम से जाना जाता था। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों ने राज्य का सीमांकन करते समय वर्ष 1875 में एक अधिसूचना जारी की। इसके अनुसार लुशाई हिल्स को कछार के मैदानी इलाकों से अलग कर दिया गया। इसके बाद दूसरी अधिसूचना 1933 में जारी की गई जिसमें लुशाई हिल्स और मणिपुर के बीच सीमा रेखा खींची गई।

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मिजोरम के नेताओं के अनुसार ब्रिटिश सरकार द्वारा वर्ष 1933 में जारी की गई अधिसूचना गलत है क्योंकि सीमांकन करते समय मिजो समाज से विचार-विमर्श नहीं किया गया था जबकि ऐसा किया जाना था। असम सरकार इसी सीमांकन का पालन करती है और इसी कारण दोनों राज्यों के बीच यह क्षेत्र विवाद का कारण बनता है।

दोनों राज्यों की सरकारों ने किया था एक समझौता
कुछ वर्षों पहले असम और मिजोरम राज्य की सरकारों के बीच एक समझौता हुआ था। इस समझौते के अनुसार दोनों राज्यों के विवादित सीमा रेखा के क्षेत्र में नो मैन्स लैंड में यथास्थिति बनाए रखा जाना निश्चित हुआ था। बाद में लैलापुर गांव के लोगों ने इस समझौते का उल्लंघन करते हुए दूसरे राज्य की सीमा में जाकर अस्थाई झोपड़ियों का निर्माण किया। बदले में मिजोरम के निवासियों ने इन झोपड़ियों में आग लगा दी। इस तरह दोनों के बीच मतभेद गहरे हो गए।

इस पूरे मुद्दे पर बोलते हुए कछार के तत्कालीन उपायुक्त ने कहा था कि राज्य के रिकॉर्ड के अनुसार जिस भूमि पर विवाद है, वह असम की है। जबकि मिजोरम के अधिकारियों का दावा था कि काफी लंबे समय से विवादित भूमि पर राज्य के निवासी खेती कर रहे थे। डॉक्यूमेंट्स के अनुसार यह भूमि सिंगला वन रिजर्व के अंतर्गत आती है जो करीमगंज की सीमारेखा में आता है। अब तक दोनों राज्यों के बीच कई हिंसक झड़पें हो चुकी हैं जिनमें कई लोगों की मौत भी हुई। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री तथा प्रशासन ने भी इस मुद्दे को सुलझाने की पहल की परन्तु विफल रहे।

इस मामले में मिजोरम के निवासियों असम के रास्ते देश में घुसने वाले "अवैध बांग्लादेशियों प्रवासियों" को दोषी मानते हैं। उनका कहना है कि अवैध रूप से भारतीय सीमा में घुस आए बांग्लादेशी यहां आते हैं, हमारी झोपड़ियों को नष्ट कर हमारी खेती को नुकसान पहुंचाते हैं और अधिकारियों को परेशान करते हैं।

केवल मिजोरम के साथ ही नहीं है सीमा विवाद
देश की आजादी के पहले तक राज्य के नाम पर असम एकमात्र राज्य था। धीरे-धीरे राज्य की बढ़ती जनसंख्या तथा विशाल आकार को देखते हुए इस विशाल भूभाग में कुछ हिस्सों को काट कर समय-समय पर अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड तथा मेघालय जैसे छोटे राज्यों का गठन किया गया।

आज असम का इन सभी राज्यों के साथ सीमा विवाद चल रहा है। वर्तमान में असम, अरुणाचल प्रदेश के साथ 804 किलोमीटर, नागालैंड के साथ 434 किलोमीटर, मेघालय के साथ 733 किलोमीटर और मिजोरम के साथ 164.5 किलोमीटर की सीमा रेखा शेयर करता है।

वर्तमान में ये सभी राज्य असम की सीमा से लगते क्षेत्रों पर अपना अधिकार जताते हैं और असम के निवासियों पर अपने क्षेत्र में आकर अतिक्रमण करने के आरोप भी लगाते हैं। सीमा क्षेत्र से जुड़े इन विवादों के कारण समय-समय पर असम के नागरिक तथा सरकारी अधिकारियों का इन राज्यों के निवासियों तथा अधिकारियों से झगड़ा भी होता रहा है। कई बार यह विवाद इतना अधिक बढ़ जाता है कि हिंसा हो जाती है और कई लोगों की मृत्यु तक हो चुकी हैं।



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