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Patrika Positive News: ऑक्सीजन सप्लाई में 'मुंबई मॉडल' की क्यों हो रही तारीफ?

नई दिल्ली। कोरोना संकट में ऑक्सीजन प्रबंधन हर राज्य के लिए अहम समस्या बनकर उभरा है। कई जगहों पर ऑक्सीजन की सप्लाई सही ठंग से न होने के कारण मरीजों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। इस बीच मुंबई नगर निगम (बृहन्मुंबई महानगरपालिका) के 'मुंबई मॉडल' के ऑक्सीजन प्रबंधन को लेकर जमकर तरीफ हो रही है। तारीफ करने वालों में सुप्रीम कोर्ट भी शामिल है।

इतना ही नहीं, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और अन्य राज्यों को निर्देश दिया है कि वो ये देखें कि मुंबई ने लोगों की जान बचाने के लिए किस तरह के प्रयास किए हैं। पत्रिका पॉजिटिव न्यूज (Patrika Positive News) के जरिए हम ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह से समय रहते मुंबई ने ऐसे हालात पर काबू पाया है। ये दिखाता की संकट में सूझबूझ से हम किसी भी मुसीबत पर पार पा सकते हैं।

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ऑक्सीजन प्रंबधन का हुनर

दरअसल इसे समझने के लिए हमें पिछले वर्ष के हालात को जानने की कोशिश करनी होगी। तब पहली लहर ने हमारे देश में दस्तक दी थी। पिछले साल मई-जून के माह में कोरोना महामारी व्यापक रूप से फैली थी। उस दौरान अस्पतालों में ऑक्सीजन की मांग अचानक बढ़ गई थी। उस समय मुंबई नगर निगम के एडिश्नल कमिश्नर पी वेलारसु को सप्लाई की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उन्होंने देखा कि ऑक्सीजन की व्यवस्था अधिकतर आईसीयू के लिए होती है। मगर कोरोना की वजह से मांग दोगुनी हुई है। प्रशासन पूरी तरह से सतर्क को गया। पी वेलारसु ने बताया कि इसके बाद से ही 21 ऑक्सीजन प्लांट लगाए गए, जिससे शहर की आपूर्ति बाधित नहीं हुई। ये प्लांट 13 हजार लीटर स्टोरेज क्षमता के हैं।

मार्च, 2021 में मुंबई शहर में कोरोना से संक्रमण तेजी से फैला और मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ। जैसे-जैसे मरीज़ों की संख्या बढ़ी,ऑक्सीजन की मांग भी बढ़ने लगी। महामारी की पहली लहर के दौरान ऑक्सीजन की मांग 200 से 210 मीट्रिक टन रोजाना थी। मगर दूसरी लहर में बढ़कर 280 मीट्रिक टन रोजाना तक पहुंच गई। इन ऑक्सीजन प्लांट्स से मुंबई के अस्पतालों को बहुत सहारा मिला।

मुंबई की ऑक्सीजन टीम

बीएमसी ने महामारी की पहली लहर से अनुभव लेकर कुछ सबक सीखे थे। कोरोना वायरस के इलाज में ऑक्सीजन की अहमियत बहुत बढ़ गई है। ऑक्सीजन की मांग, जरूरत, ट्रांसपोर्ट और समय पर डिलिवरी सुनिश्चित करने के लिए खास टीम तैयार की गईं। पी वेलारसु के अनुसार ऑक्सीजन प्रबंधन के लिए एक टीम गठित की गई। इसके लिए फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन विभाग ने छह अधिकारियों को नियुक्त किया। इनका काम वार्ड अधिकारियों और ऑक्सीजन उत्पादकों के बीच तालमेल बैठाना था। अस्पतालों में ऑक्सीजन की उपलब्धता पर नजर रखने के लिए कुछ लोगों को अलग से तैनात किया गया।

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ये टीम राज्य के बाहर से आने वाले ऑक्सीजन टैंकरों की लगातार निगरानी कर रही थी। इस बात का खास ख्याल रखा गया कि ये टैंकर सही समय पर अपनी जगह तक पहुंच जाएं। अप्रैल के तीसरे हफ्ते में महामारी का प्रकोप तेजी से फैला। अस्पतालों से ऑक्सीजन के लिए मदद के संदेश मिलने लगे थे। सप्लाई बरकार रखने और वक्त पर पहुंचाने के लिए जीतोड़ मेहनत की गई।

168 कोरोना मरीजों की शिफ्ट किया

उन्होंने बताया कि 17 अप्रैल को एक बड़ी दुर्घटना होने से बच गई। वेलारसु बताते हैं कि शहर के छह अस्पतालों में ऑक्सीजन की सप्लाई कम पड़ने लगी। इस मांग को पूरा करने के लिए ऑक्सीजन कम पड़ रही थी। तय हुआ कि 168 मरीजों को जम्बो कोविड सेंटर में शिफ्ट करा जाएगा। इस समस्या को दो दिन में ही दूर कर लिया गया था।

नगर निगम के अधिकारियों के अनुसार उन्होंने अस्पतालों की ऑक्सीजन सप्लाई पर निगरानी बनाए रखी थी। इसके लिए एक ऑक्सीजन नर्स सिस्टम की व्यवस्था तैयार की गई थी। टास्क फोर्स के निर्देश के अनुसार,ऑक्सीजन का फ्लो 93 से 95 के बीच रखा गया था।

छह जगहों पर ऑक्सीजन सिलिंडर

छोटे अस्पतालों में परेशानी शुरू होने के बाद मुंबई में छह जगहों पर ऑक्सीजन सिलिंडर की खेप रखी गई थी। बीएमसी ने छह जगहों पर 200 ऑक्सीजन सिलिंडर्स के साथ गाड़ियां भी लगा दीं। जब कभी भी ऑक्सीजन की मांग आती, गाड़ी को अस्पताल की ओर भेज दिया जाता। 13 से 14 घंटे में ऑक्सीजन सप्लाई कराई गई।



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