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महात्मा गांधी मर्डर केस में नाथूराम गोडसे का वो अंतिम बयान, जिसे सुनकर आंखें हो गई थी नम

नई दिल्ली। आज यानी 19 मई को ही महात्मा गांधी को गोलियो से भूनने वाले नाथू राम गोडसे का जन्म हुआ था। 19 मई 1910 को पुणे स्थित बारामती में हुआ था। संघ विचारधारा को मानने वाले नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को जान से मार दिया था और अपने आपको आत्म समर्पण कर दिया था। उसके बाद उन्हें कोर्ट में जज के सामने लाया गया। बयान हुए उसके बाद उन्हें फांसी की सजा दे दी गई। आज हम आपको नाथूराम गोडसे के अंतिम बयान के बारे में बताने जा रहे हैं, जो उन्होंने जज के सामने दिया था। जिसे सुनकर कोर्ट में बैठे हर व्यक्ति की आंखें नम हो गई थी। आइए आपको भी बताते हैं कि उन्होंने अपने बयान में क्या कहा था।

नाथूराम गोडसे का कोर्ट में जज के सामने अंतिम बयान
'सम्मान, कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमें अहिंसा के सिद्धांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है. में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का सशस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है।

प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो ऐसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना को मैं एक धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूं। मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे, या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक, मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाए। वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे।

महात्मा गांधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे। गांधी जी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सौंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया। गांधी जी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किए जाते थे। जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी। उसी ने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पाकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया।

मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण भारत माता के टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाद देश का एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई। नेहरु तथा उनकी भीड़ की स्वीकारोक्ति के साथ ही एक धर्म के आधार पर अलग राज्य बना दिया गया। इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई स्वतंत्रता कहते है और किसका बलिदान?

जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गांधी जी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है, तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया। मैं साहस पूर्वक कहता हूँ की गांधी अपने कर्तव्य में असफल हो गए। उन्होंने स्वयं को पाकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया।

मैं कहता हूं की मेरी गोलियां एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी, जिसकी नीतियों और कार्यों से करोड़ों हिन्दुओं को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला। ऐसी कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी, जिसके द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके, इसलिए मैंने इस घातक रास्ते का अनुसरण किया।

मैं अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूंगा, जो मैंने किया उस पर मुझे गर्व है। मुझे कोई संदेह नहीं है कि इतिहास के ईमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्यांकन करेंगे। जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीचे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियों का विसर्जन मत करना।'



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