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केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाली UDF का दावा- सत्ता में आए तो सबरीमाला में 'रीति-रिवाजों' की रक्षा के लिए कानून बनाएंगे

नई दिल्ली।
केरल में इस साल विधानसभा चुनाव (Kerala Assembly Election) होने हैं। इससे पहले ही तमाम दल नए-नए दावे और वादे कर रहे हैं, जिससे चुनाव के दौरान वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए रिझाया जा सके। इसी कड़ी में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) ने सबरीमाला की परंपराओं को सहेजने को लेकर एक अनोखी अपील की है। यूडीएफ ने जनता से की गई अपनी इस अपील में कहा कि अगर लोग सत्ता में आने के लिए हमें वोट देते हैं, तो फ्रंट सबरीमाला मंदिर के रीति-रिवाजों की रक्षा का कानून बनाएंगे। पार्टी के एक विधायक ने कहा कि कानून लागू होने के बाद जो इसे तोड़ेगा, उसे दो साल की जेल होगी।

कानून तोड़ा तो दो साल की जेल
राज्य में कांगे्रस के वरिष्ठ नेता और विधायक तिरंवचूर राधाकृष्णन ने कानून का मसौदा जारी करते हुए कहा कि यदि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सत्ता में आई, तो हम इसे कानून बनाकर पारित करेंगे। राधाकृष्णन ने कहा कि यदि हम सत्ता में आए तो इस कानून को लागू करेंगे। इस प्रस्तावित कानून के तहत, पुजारी की सलाह पर सबरीमाला में अनाधिकृत प्रवेश पर प्रतिबंधित सुनिश्चित किया जाएगा। जो भी इस कानून का उल्लंघन करेगा, उसे दो साल की जेल होगी।

माकपा ने किया पलटवार
दूसरी ओर, माकपा के प्रभारी राज्य सचिव ए. विजयराघवन ने दावा किया कि यूडीएफ लोगों को मूर्ख बना रहा है, क्योंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहले से विचाराधीन है और ऐसे में इस मामले में कानून बनाना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि यूडीएफ ने ऐलान कर दिया है कि सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ एक नया कानून तैयार किया जाएगा, यह ऐलान राज्य की जनता को मूर्ख बनाने के लिए किया जा रहा है। असल में यूडीएफ सत्ता में नहीं आने वाली है और इसीलिए वह ऐसे खोखले दावे कर रही है। दूसरी बात, ऐसे मामलों में कानून बनाना संभव नहीं है, क्योंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

सरकारी फैसले से पहुंची चोट ठीक करने की मांग
इससेे पहले कांग्रेस ने राज्य में सत्तारूढ़ एलडीएफ सरकार से कहा था कि वह कोई कानूनी तरीका निकाले, जिससे कथित तौर पर जल्दबाजी में लिए गए सरकारी फैसले से पहुंचे चोट को ठीक किया जा सके। कांग्रेस का स्पष्ट इशारा उस आदेश को लागू कराने के संबंध में था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 में दिए गए फैसले में पवित्र सबरीमाला मंदिर में सभी आयुवर्ग की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दे दी थी। इस आदेश के संदर्भ में दक्षिणपंथी समूहों और भाजपा कार्यकर्ताओं ने विरोध-प्रदर्शन किया था। सबरीमाला मंदिर के रीति-रिवाज सहेजने के पक्षधर धर्मस्थल में 10 से 50 आयुवर्ग की महिलाओं को जाने की अनुमति देने का विरोध किया गया था। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में कई समीक्षा याचिकाएं लंबित पड़ी हैं।



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