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सवाल: अपने सैनिकों की मौत को मानने में चीन को आठ महीने का लंबा वक्त क्यों लगा

नई दिल्ली।

पिछले साल जून में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुए हिंसक झड़प में दोनों ओर के जवाब हताहत हुए। भारत ने तुरंत स्वीकार कर लिया कि इस पूरे मामले में उसके 20 सैनिक मारे गए। भारत की ओर से यह दावा भी किया गया कि इस झड़प में चीन के भी कुछ सैनिक मारे गए हैं। मगर चीन ने इस दावे को नहीं माना।

यही नहीं दूसरे देशों की मीडिया रिपोर्ट और खुफिया एजेंसियों ने समय-समय पर अपनी पड़ताल करने के बाद यह खुलासा किया कि झड़प में चीन के सैनिक भी मारे गए थे। हालांकि, आंकड़े कुछ स्पष्ट नहीं थे। कुछ दिन पहले रूसी मीडिया ने भी दावा किया कि उस खूनी संघर्ष में चीन के कम से कम 45 सैनिक मारे गए। इसके बाद गत शुक्रवार को चीन ने स्वीकार किया कि गत वर्ष जून में भारतीय सैनिकों के साथ हुई झड़प में उसके सैनिक भी मारे गए थे। हालांकि, अब बहुत से लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि चीन को अपने सैनिकों की मौत को मानने में आठ महीने का लंबा वक्त क्यों लगा।

इसके जवाब में चीन बेतुकी दलीलें दे रहा है। चीन के अधिकारियों का कहना है कि जून में हुए संघर्ष में दोनों देशों के सैनिक हताहत हुए थे। इसमें पूरी जिम्मेदारी भारत की है। हम बड़े देश हैं और इस नाते हमने सब्र का परिचय दिया।

बता दें कि चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने गत शुक्रवार को दावा किया था कि लद्दाख के गलवान वैली में हुए खूनी झड़प में उसके कुल चार सैनिक मारे गए। चीन ने सैनिकों की मौत पर तब अपना मुंह नहीं खोला था। मगर शुक्रवार को गलवान वैली में भारत और चीन के सैनिकों के बीच गत 21 जून को हुए झड़प का वीडियो फुटेज भी जारी किया गया।

सवाल और चीन के जवाब
सवाल यह भी खड़े हो रहे हैं कि जब दोनों देशों के सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी के पास विवादित क्षेत्र से पीछे हट रहे हैं तो चीन ने अचानक अपने सैनिकों की मौत की बात को सार्वजनिक क्यों किया? शुक्रवार को वीडियो फुटेज जारी करते समय चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हू चुनयिंग से यह सवाल पूछा भी गया। तब उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्रालय ने सीमा पर संघर्ष में चीनी फ्रंटलाइन अधिकारी और सैनिकों की बहादुरी से जुड़े सवालों के जवाब दिए हैं। गलवान में पिछले साल जून में संघर्ष हुआ था। इसमें दोनों तरफ के सैनिक हताहत हुए थे। इसकी पूरी जिम्मेदारी भारत की है। वहीं, इस पूरे मामले में चीन ने बड़े देश होने का परिचय देते हुए सब्र के साथ काम किया।



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