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दशहरा विशेष: मंदसौर में है रावण की ससुराल, दामाद के तौर पर होती है पूजा

मंदसौर.
अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में मनाए जाने वाले दशहरे से मंदसौर की अनोखी मान्यता जुड़ी हुई है किवंदतियों के अनुसार देश में जिन कुछ स्थानों को रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका माना जाताा है, उनमें मंदसौर शामिल है। मंदसौर में इसीलिए दशानन को अपना जमाई माना जाता है और जमाई के रूप में ही उसकी पूजा होती है।

जमाई होने के कारण ही रावण की प्रतिमा के सामने महिलाएं घूंघट में जाती हैं। दशहरे के दिन सुबह रावण की प्रतिमा की पूजा-अर्चना होती है और शाम को गोधुलि बेला में दहन किया जाता है। यह सारी आवभगत नामदेव समाज की देखरेख में खानपुरा में होती है। पूर्व में शहर को दशपुर के नाम से पहचाना जाता था। वहां रावण की स्थायी प्रतिमा बनवाई हुई है। खानपुरा क्षेत्र में रुंडी नामक स्थान पर यह प्रतिमा स्थापित है। समाज इस प्रतिमा की पूजा-अर्चना करता है।

गधे का सिर लगाया

बताया जाता है कि 200 साल से भी अधिक समय से समाजजन रावण प्रतिमा की पूजा करते आ रहे हैं। पहले पुरानी मूर्ति थी। अब इसे नए स्वरूप में स्थापित किया गया है। इसके 10 सिर हैं, लेकिन उसकी बुद्धि भ्रष्ट होने के प्रतीक के रूप में मुख्य मुंह के ऊपर गधे का सिर लगाया गया।

रावण की प्रतिमा के पैर में लच्छा बांधती हैं महिलाएं

नामदेव समाज के लोग प्रतिमा की पूजा-अर्चना करते हैं और प्रतिमा के पैर में लच्छा बांधकर मन्नत मांगते हैं उनमें मान्यता है कि इस प्रतिमा के पैर में धागा बांधने से बीमारी नहीं होती। इसके बाद राम और रावण की सेनाएं निकलती हैं। शाम को वध से पहले लोग रावण के समक्ष खड़े रहकर क्षमा याचना करते हैं। वे कहते हैं, ‘सीता का हरण किया था, इसलिए राम की सेना आपका वध करने आई है।’ इसके बाद प्रतिमा स्थल पर अंधेरा छा जाता है। फिर उजाला होते ही राम की सेना उत्सव मनाने लगती है।

अच्छाई के लिए पूजा, बुराई के कारण दहन

नामदेव समाज के अध्यक्ष अशोक बघेरवाल ने बताया कि सालों पहले से यह परंपरा चली आ रही है। हमारे पूर्वज भी पूजा करते आए हैं। हम भी उसी का निर्वहन कर रहे हैं। किवंदती के अनुसाद रावण को मंदसौर का दामाद माना गया है। रावण प्रकाण्ड विद्वान ब्राह्मण और शिवभक्त था। ऐसे में उसकी अच्छाइयों और प्रकाण्डता को लेकर पूजा की परंपरा शुरू हुई। इसी के चलते सालों से नामदेव समाज पूजा करता आया है और समाज यह परंपरा अभी भी निभा रहा है। रावण ने सीताहरण जैसा काम किया था। इसी बुराई के चलते रावण दहन भी शाम को गोधुलि बेला में समाजजन करते हैं।

विकास तिवारी.



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