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Exoplanet को लेकर शोध में हुआ बड़ा खुलासा, हीरे और सिलिका से बने हो सकते हैं गैर सौरमंडलीय ग्रह

नई दिल्ली। एक्सोप्लैनेट ( Exoplanet ) को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। दरअसल ये खुलासा एक शोध अध्ययन के जरिए किया गया है। ये अध्ययन द प्लेनेटरी साइंस जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस शोध के मुताबिक कुछ कार्बन समृद्ध एक्सोप्लैनेट को हीरे और सिलिका के जरिए बनाया जा सकता है, हालांकि ये पूरी तरह परिस्थितियों यानी हालातों पर ही निर्भर करता है।

द प्लेनेटरी साइंस जर्नल में प्रकाशित इस शोध ने दुनियाभर के तमाम वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष शोधकर्ताओं को चौंका दिया है। दरअसल इस अध्ययन में दावा है कि कार्बन युक्त एक्सोप्लैनेट हीरे और सिलिका से बना हो सकता है।

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ये होते हैं एक्सोप्लैनेट
एक्सोप्लैनेट ( Exoplanet) वे ग्रह होते हैं जो सौरमंडल में नहीं होते। ये ग्रह सूर्य की जगह किसी और तारे की परिक्रमा करते हैं। अब तक कुल मिला कर करीब 3700 एक्सोप्लैनेट की पहचान की गई है। इनमें 53 जीवन पनपने योग्य एक्सोप्लैनेट माने जाते हैं। इनमें सबसे करीबी ग्रह हमारे सबसे करीबी तारे, प्रोक्सिमा सेंटौरी की परिक्रमा करता है, जो हमसे 4.2 प्रकाश वर्ष दूर है।

एरिजोना राज्य विश्वविद्यालय (एएसयू) और शिकागो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की एक टीम की ओर से हुए इस अनुसंधान में पाया कि एक्सोप्लैनेट्स जो “उच्च कार्बन ऑक्सीजन युक्त राशन के साथ सितारों की उपस्थिति में हीरे को बदलने और उपस्थिति में सिलिकेट करने की अधिक संभावना रखते हैं।

अध्ययन में पाया कि वहां पानी और जीवन लायक स्थितियां हो सकती हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक ये कार्बन समृद्ध एक्सोप्लैनेट हीरे और सिलिकेट में परिवर्तित हो सकते हैं, अगर ब्रह्मांड में प्रचूर मात्रा में पानी मौजूद है तो।

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परीक्षण करने के लिए अनुसंधान टीम को उच्च गर्मी और उच्च दबाव का उपयोग करते हुए कार्बाइड एक्सोप्लैनेट के इंटीरियर की नकल करने की जरूरत थी। ऐसा करने के लिए, उन्होंने पृथ्वी और ग्रहों की सामग्री के लिए सह-लेखक शिम की प्रयोगशाला में उच्च दबाव वाले हीरे-निहाई कोशिकाओं का इस्तेमाल किया।

आपको बता दें कि हाल में भारतीय खगोलविद के नेतृत्व वाली टीम ने पृथ्वी के दो गुना से ज्यादा बड़े आकार के एक ऐसे एक्सोप्लैनेट का पता लगाया है, जहां जीवन की संभावनाएं हो सकती हैं। इस ग्रह के वायुमंडल में हाइड्रोजन की अधिकता है। इसकी रिपोर्ट एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित हुई है। ये एक्सोप्लैनेट पृथ्वी से 124 प्रकाशवर्ष दूर है।



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