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लोबसंग सांग्ये ने साधा चीन पर निशाना, कहा - तिब्बत समस्या का समाधान के लिए दलाईलामा से बात करें ‘शी’

नई दिल्ली। तीन माह से ज्यादा समय से भारत-चीन ( India-China Border Dispute ) के बीच पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में सीमा विवाद जारी है। इस बीच निर्वासित तिब्बत सरकार ( Tibetan government in exile ) के प्रधानमंत्री डॉ. लोबसंग सांग्ये ( Prime Minister Dr. Lobsang Sangye ) ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने चीन की सरकार ( Chinese Government ) पर निशाना साधते हुए साफ कर दिया है कि अगर वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ( President Xi Jinping ) तिब्बत में शांति चाहते हैं तो उनके पास केवल एक विकल्प है। वह धर्मगुरु दलाईलामा ( Religious leader Dalai Lama ) से बात करें।

तिब्बत को प्रांत में नहीं बदलने देंगे

प्रधानमंत्री डॉ. लोबसंग सांग्ये ने चीन सरकार पर जमकर हमला बोल साफ संदेश दिया है कि धर्मगुरु दलाईलामा ने तिब्बत के लोगों को लोकतंत्र का उपहार दिया है। पिछले साठ वर्षों से दलाईलामा दुनिया भर में तिब्बती समाज को आगे लाए। मार्च 2011 को दलाईलामा ने अपने सभी राजनीतिक अधिकार लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता को सौंप दिए।

लोबसंग सांग्ये ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के हाल के नीतियों की तीखी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि तिब्बत को चीन की सरकार प्रांत में बदलना चाहती है। हम ऐसा नहीं होने देंगे।

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शी को बदलना होगा दमनकारी नीति

उन्होंने कहा कि चीन की स्थिरता और अखंडता तिब्बत की स्थिरता और सुरक्षा पर निर्भर है। चीन में तिब्बती लोगों से अधिक भेदभाव, तिब्बतियों के बुनियादी मानव अधिकारों का अधिक उल्लंघन हो रहा है। जब शी जिनपिंग की सरकार अपनी नीति नहीं बदलती तब तक तिब्बत की समस्या का समाधान संभव नहीं है।

1959 में भारत आ गए थे दलाईलामा

बता दें कि 1959 में चीन की कम्युनिस्ट की सरकार ने सैन्य बल का इस्तेमाल कर समूचे तिब्बती क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने तिब्बती जनता पर अपना शासन थोप दिया था। इसकी वजह से तिब्बत आध्यात्मिक प्रमुख दलाई लामा के पास इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा कि अपनी मातृभूमि को छोड़ दें और पड़ोसी देश भारत में शरण ले लें।

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वह 80,000 से ज्यादा तिब्बतियों के साथ पैदल चलकर भारत आ गए और निर्वासन में जाने को मजबूर हुए थे। भारत की जमीन पर कदम रखने के दलाई लामा ने निर्वासित तिब्बती सरकार की सभी संस्थाओं को फिर से खड़ा करने की कोशिश शुरू की थी। इसके साथ ही उन्होंने नए निर्वासित तिब्बती संसद की स्थापना की प्रक्रिया भी शुरू कर की। उन्हीं के संरक्षण में भारत में निर्वासित तिब्बती सरकार का अस्तित्व बरकरार है।



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