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Corona Crisis : इसलिए जिंदा रिक्शा चालक कफन ओढ़ बना मुर्दा, जानिए क्या है मामला

नई दिल्ली। देशभर में कोरोना वायरस महामारी ( Coronavirus Pandemic ) का कहर जारी है। बिहार में कोरोना विस्फोट ( Corona explosion ) के बाद से हालात बेकाबू हो गए हैं। कोविद-19 ( Covid-19 ) पर काबू पाने के लिए बिहार ( Bihar ) में फिर से लॉकडाउन लागू है। फिर से लॉकडाउन लागू होने से मजदूरी करने वाले लोग भुखमरी ( Starvation in Bihar ) के कगार पर पहुंच गए हैं। कोरोना की मार का आंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि बिहार के आरा में भूख मिटाने के लिए एक रिक्शा चालक ( Rikshaw Puller ) कफन ओढ़ बना जिंदा मुर्दा बन गया।

यह घटना पूरी तरह से सच है, लेकिन अफसोस की बात है कि गरीब मजदूरों को तत्काल राहत प्रदान करने को लेकर प्रदेश सरकार ( State Government ) पूरी तरह से उदासीन है।

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मजबूरी में बना जिंदा लाश

दरअसल, भूख मिटाने के लिए मुर्दा बना रिक्शा चालक मरा नहीं है। हकीकत यह है कि वह जिंदा है। लेकिन, भूख मिटाने के लिए उसे जिंदा ही कफन ओढ़कर शरीर पर फूलों की माला रखनी पड़ी। ऐसा इसलिए कि बिहार ( Bihar ) में फिर से लॉकडाउन लागू होने ने न तो सवारी, न ही मजदूरी काम मिल रहा है। इसलिए पटना जिले के बिहटा निवासी रिक्शा चालक रामदेव ( Rikshaw Puller ) ने भूख मिटाने के लिए यह नुस्खा ईजाद कर लियां।

रामदेव आरा में ही रिक्शा चलाकर परिवार का भरण पोषण करता था। लॉकडाउन ( Lockdown ) की वजह से सवारी नहीं मिल रहीं हैं। पैसेंजर नहीं मिलने के कारण खाना भी जुटाना उसके लिए मुश्किल हो गया।

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भूख से मरने की नौबत

नौबत यह हो गई कि या तो भूखे मर जाएं या कुछ करें। इसलिए उसने शरीर पर कफन ओढ़ कर माला रखी और अगरबत्ती जलाई। फिर डिस टैंक रोड के किनारे लेट गया। जो भी राहगीर आते- जाते उस पर रुपए-पैसे रख देते थे। इस तरह उसे कुछ पैसे मिल गए।

बातचीत में रिक्शाचालक रामदेव ने बताया कि पहली बार जब लॉकडाउन ( Lockdown ) लागू हुआ तो सरकार की ओर से बंटने वाले सामान से मदद भी मिल जाती थी लेकिन अब तो वो मदद भी नहीं मिल रही। ऐसे में भूख मिटाने को कुछ सूझा नहीं। दिमाग में आया कि जब भूख से मरना ही है तो क्यों न खुद पहले ही मार लूं। इसलिए मुर्दा बनकर सड़क किनारे लेट गया।

मजदूर पर सबसे ज्यादा असर

बता दें कि कोरोना वायरस महामारी की वजह से दुनियाभर में भयंकर तबाही ( Catastrophe ) की स्थिति है। कोरोना की तेज रफ्तार से लोगों की हालत पहले से भी खस्ता हो चुकी है। इसका असर सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग ( Labour Class ) के लोगों पर हुआ है, जो अपना दो वक्त की रोटी के लिए दिहाड़ी मजदूरी ( Daily Laborers ) पर आश्रित होते हैं।



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