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कोरोना ने तोड़ी मजदूरी की कमर, न रोटी न कपड़ा, पैदल ही तय कर रहें मीलों का सफर

नई दिल्ली। कोरोना के संक्रमण ने पूरी दनिया को हिलाकर रख दिया है। तमाम देश इससे बचने के लिए लॉकडाउन का सहारा ले रहे हैं। भारत में भी ये तरीका आजमाया गया। दफ्तर से लेकर ट्रेन और बसों तक सब कुछ बंद, लेकिन महामारी से लोगों को बचाने की इस कवायत में बेेचारे उन लोगों का क्या कसूर जिनके पास न तो रहने के लिए छत है न ही खाना। हम बात कर रहे हैं उन देहाड़ी मजदूरों की जो दूर-दराज के इलाके से मजदूरी के सिलसिले में दिल्ली, मुंबई या अन्य बड़े शहरों में रह रहे थे।

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लॉकडाउन की मार ने उन सभी मजदूरी की कमर तोड़ दी है। किसी तरह मेहनत करके वे अपना खर्चा उठाते थे, लेकिन लॉकडाउन की मार ने उनका वो सहारा भी छीन लिया। अब जब घर ही नहीं रहा तो लक्ष्मण रेखा कैसी। यही सोच अब ज्यादातर मजदूरों की है। बस उनका सिर्फ एक ही लक्ष्य है अपनों तक पहुंचना। घर जाने के लिए न तो उन्हें कोई बस मिल रही है, न ही कोई अन्य साधन। ऐसे में मीलों का सफर वे पैदल ही तय करने को मजबूर हैं। अपने दर्द का कुछ ऐसा ही किस्सा मोतीहारी के रहने वाले एक शख्स ने सुनाई। उन्होंने बताया कि वे दिल्ली में मजदूरी के सिलसिले में रह रहे थे, लेकिन लॉकडाउन की वजह से उनकी रोजी-रोटी छिन गई है। वे अपने घर लौटना चाहते हैं, लेकिन कोई साधन न मिल रहा। ऐसे में उन्होंने अपने रिक्शे पर परिवार के 5 अन्य लोगों को बिठकार घर के लिए रवाना हो गए।

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1018 किलोमीटर के इस लंबे सफर को वह महज रिक्शे से ही तय करेंगे। अगर बिना रुके वो चलते रहे तब भी उन्हें पहुंचने में 5 दिन और 5 रातें लगेंगे। ऐसा ही हाल चंडीगढ़ में भी देखने को मिला। मजदूरी करने के बाद फुटपाथ पर सोने वाले 14 मजदूर अपने घर बलरामपुर के लिए निकल पड़े हैं। 900 किमी का ये सफर वे साईकिल से तय करने को मजबूर है, क्योंकि उनके पास कोई दूसरा विकल्प नही हैं। उन्होंने अपना दर्द बांटते हुए कहा कि पिछले तीन दिनों से वे साईकिल चला रहे है, लेकिन खाना सिर्फ दो बार ही खा पाए हैं। ऐसा ही हाल अहमदाबाद से राजस्थान जाने वाले कुछ मजदूरों का भी है। इतनी लंबी दूरी तय करने के लिए उनके पास साईकिल तक नहीं है। इसलिए वे पैदल ही इस लंबे सफर के लिए निकल पड़े हैं।



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