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चंद्रयान-2: ISRO की आखिरी उम्‍मीद, चांद पर फंसे लैंडर विक्रम का संकटमोचक बनेगा आर्बिटर!

नई दिल्‍ली। इंडियन स्‍पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन ( ISRO) की महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम को लेकर वैज्ञानिकों ने अभी भी उम्‍मीदें छोड़ी नहीं है। इसरो के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि चांद की सतह पर मौजूद विक्रम सही सलामत है। वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम क्षतिग्रस्त नहीं हुआ है। वह सतह पर एक तरफ झुका हुआ पड़ा है।

हार्ड लैंडिंग का शिकार हुआ लैंडर

इसरो के वैज्ञानिक लैंडर विक्रम से संपर्क करने की को लेकर निरंतर प्रयासरत हैं। बता दें कि चांद की सतह से महज 2.1 किमी दूर रहने के दौरान ही लापता विक्रम को इसरो ने एक दिन पहले ही खोज निकाला था। विक्रम को सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी। मगर उसे हार्ड लैंडिंग का शिकार होना पड़ा।

उम्‍मीद कायम

फिलहाल चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर में लगे कैमरे ने जो तस्वीरें भेजी हैं उससे यह पता चला है कि विक्रम की हार्ड लैंडिंग हुई थी। इससे विक्रम में कोई टूट-फूट नहीं हुई है। इसलिए वैज्ञानिकों इस उम्‍मीद में हैं कि विक्रम से अब भी संपर्क हो सकता है।

हालांकि यह भी माना जा रहा है कि विक्रम की स्थिति पहले जैसी ही बनी हुई है। उससे संपर्क करना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। अगर इसने सॉफ्ट लैंडिंग की होती तो इसकी सारी प्रणाली कार्य कर रही होतीं।

तो संकटमोचक बनेगा ऑर्बिटर

इसरो के वैज्ञानिकों का कहना है कि फिलहाल आसमान में चक्कर काट रहे चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर एजेंसी के लिए संकटमोचक जैसा है। ऑर्बिटर अभी हनुमान की भूमिका में है। ऑर्बिटर के पास इतना ईंधन है कि वह बिना रुके अपने काम को सात साल तक बखूबी अंजाम देता रहेगा।

एजेंसी के वैज्ञानिक अब ऑर्बिटर के पहले से तय एक साल के कार्यकाल को बढ़ाकर सात साल तक करने जा रहे हैं जिससे मिशन के बाकी उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।

यह चंद्रमा के वजूद और उसके विकास के बारे में हमारी समझ को बढ़ाने में मददगार साबित होगा। ऑर्बिटर पर लगा हाई रिजोल्यूशन वाला कैमरा किसी भी चंद्र मिशन में लगने वाले कैमरों में सबसे बड़ा (0.3 मीटर) है।

इसलिए इसरो के वैज्ञानिकों की आखिरी उम्मीद यही है कि अगर विक्रम का एंटीना ग्राउंड स्टेशन या फिर ऑर्बिटर की ओर होगा तो उससे संपर्क की उम्मीद बढ़ सकती है।

पावर जनरेशन कोई मुद्दा नहीं

मिशन चंद्रयान-2 से जुडे़ वैज्ञानिकों के मुताबिक विक्रम का ऊर्जा का खपत करना कोई मुद्दा नहीं है। उसे यह ऊर्जा सौर पैनलों से ही मिल सकती हैं, जो उसके चारों ओर हैं और अपनी अंदरूनी बैटरियों से भी उसे यह ऊर्जा हासिल हो सकती है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि इसरो की एक टीम इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क पर विक्रम से संचार कायम करने के काम में दिन-रात लगी हुई है।



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