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दिल्‍ली में शीला दीक्षित ने की थी भागीदारी के बल भरोसे की राजनीति

नई दिल्‍ली। उत्‍तर प्रदेश की राजनीति को छोड़कर जब शीला दीक्षित ( Sheila Dikshit Politics ) दिल्‍ली आईं, तो यहां के नेताओं ने सोचा नहीं था कि वह एक नई लकीर खींचने में कामयाब होंगी। सबको साथ लेकर चलने की राजनीति के बल पर वह पहली बार 1998 में दिल्‍ली की मुख्‍यमंत्री बनीं। वह 2013 तक इस पद पर रहीं।

 

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दिल्‍ली वालों की नब्‍ज टटोलने में रहीं कामयाब

दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल सबसे लंबा है। अपने कार्यकाल के दौरान उन्‍होंने लोगों के भरोसे की राजनीति की।

चाहे बात दिल्‍ली मेट्रो, परिवहन व्‍यवस्‍था, चौड़ी सड़कों का जाल, फ्लाईओवर, सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्‍ता, ग्रीन दिल्‍ली, अतिक्रमण के खिलाफ अभियान, जल आपूर्ति व्‍यवस्‍था, 24 घंटे बिजली सहित अन्‍य योजनाओं की हो, वह हर मामले में मिसाल कायम करने में सफल रहीं।

 

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सभी वर्गों का रखा ख्‍याल

उन्‍होंने लोगों के भरोसे की राजनीति कर अपनी अलग पहचान बनाई। शीला दीक्षित ( Sheila Dikshit Politics ) सबको साथ लेकर चलने में विश्‍वास करती थीं।

अपनी शैली के बल पर ही उन्‍होंने पूर्वांचलियों को कांग्रेस का वोट बैंक बनाया। इसी के दम पर तीन बार दिल्‍ली की मुख्‍ममंत्री बनीं।

इतना ही नहीं उन्‍होंने अपने कार्यकाल के दौरान मंत्रिमंडल में सभी वर्गों के प्रतिनिधित्‍व का ख्‍याल रखा।

यही कारण है कि शीला दीक्षित पार्टी के नेताओं के आंतरिक विरोध के बावजूद भी दिल्‍ली में लगातार पांच साल के लिए तीन बार मुख्‍यमंत्री बनीं।

 

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शीला की भागीदारी को मिला था यूएन अवॉर्ड

शीला की भरोसे की राजनीति की सबसे बड़ी मिसाल उनकी भागीदारी योजना को माना जाता है।

उन्‍होंने दिल्‍ली में विकास को बढ़ावा देने के लिए 2002 में भागीदारी योजना की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत दिल्‍ली में 4400 रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों ( RWA ) गठन हुआ।

समूची दिल्ली से ताल्लुक रखने वाले शहर के इन तमाम आरडब्ल्यूए को पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अपनी भागीदारी योजना से जोड़ा था।

आम जनता के हाथों में सत्ता सौंपने की इस नायाब पहल को संयुक्त राष्ट्रसंघ से पुरस्कार भी मिला था।

यह बात अलग है कि अन्‍ना आंदोलन से सत्‍ता पर काबिज हुए अरविंद केजरीवाल की सरकार जनता से पूछकर बजट तो बना लेती है, लेकिन शहर के विकास में जुटी दिल्ली की 4400 रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों (आरडब्ल्यूए) को विकास के नाम पर फूटी कौड़ी देने को तैयार नहीं है।

 

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मेरी दिल्‍ली, मैं ही सवारूं

शीला दीक्षित ( Sheila Dikshit Politics ) की सरकार ने वर्ष 2007 से सभी जिलों को 'मेरी दिल्ली, मैं ही संवारू' नाम से भागीदारी योजना के तहत पांच-पांच करोड़ रुपए का फंड भी देना शुरू कर दिया।

यह रकम संबंधित जिले के आरडब्ल्यूए के प्रतिनिधियों की सहमति से बिजली, पानी, स्ट्रीट लाइट, सड़क आदि स्थानीय विकास की योजनाओं पर खर्च की जाती थी।

लोगों के दिल को छूने वाली योजनाएं

 

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मेट्रो: दिल्‍ली की लाइफलाइन

दिल्‍ली के लोगों को इन समस्‍याओं से निजात दिलाने के लिए उन्‍होंने सबसे पहले परिवहन प्रणाली पर जोर दिया। आज वही मेट्रो दिल्ली एनसीआर की लाइफ लाइन है।

दिल्‍ली मेट्रो देश की दूसरी सबसे पुरानी मेट्रो सेवा है।

दिल्‍ली में दिसंबर, 2002 में जब मेट्रो शुरू हुई तो शीला दीक्षित की सरकार थी।

दिल्ली में फ्लाईओवर्स का जाल बिछाने का श्रेय शीला सरकार को जाता है। आंकड़ों के मुताबिक 87 फ्लाईओवर और अंडरपास शीला दीक्षित की सरकार में बने थे।

दिल्ली की सड़कों से अतिक्रमण हटाकर उन्हें चौड़ा करने का श्रेय भी शीला दीक्षित की सरकार को जाता है।

दिल्ली भले देश की राजधानी थी लेकिन यहां बिजली की व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं थी।

पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप ( PPP ) के तहत दिल्ली को 24 घंटे बिजली आपूर्ति उन्‍हीं के समय से दिल्‍ली वालों को मिलनी शुरू हुई।

दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने के प्रयास शीला दीक्षित की सरकार में बहुत हुए। ग्रीन दिल्ली कॉन्सेप्ट के जरिए दिल्ली में हरियाली बढ़ाने का काम हुआ।

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