धार्मिक आजादी: चीन और पाक में ज्यादा खराब हालात, फिर भी अमरीका के निशाने पर भारत

नई दिल्ली। भारत में हमेशा से धार्मिक आजादी रही है। यहां पर हर वर्ग और धर्म को मानने, उसका अनुपालन करने की पूरी आजादी है। जबकि पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन की बात करें तो वहां ऐसा देखने को नहीं मिलता है। इसके बावजूद समय-समय पर कुछ विदेशी मेहमानों की ओर से भारत को धार्मिक आजादी को लेकर आइना दिखाने का प्रयास किया जाता रहा है।
बीते दिन भारत दौरे पर आए अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ( Mike Pompeo ) ने एक बयान दिया जिसको लेकर फिर यह सवाल उठने लगा कि आखिर अमरीका भारत के पीछे क्यों पड़ा है? दरअसल, पोम्पियो ने कहा कि अमरीका दुनिया में धार्मिक आजादी का पूरी मजबूती के साथ समर्थन करता है। सबसे बड़ी बात यह है कि पोम्पियो का यह बयान ऐसे समय में आया है जब धार्मिक आजादी को लेकर एक वार्षिक रिपोर्ट सामने आई है।
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यह रिपोर्ट बीते सप्ताह पोम्पियो ने ही जारी की थी। इस रिपोर्ट कि मानें तो भारत में बहुसंख्य यानी हिन्दुओं द्वारा अल्पसंख्यकों (ज्यादातर मुसलमान) को प्रताड़ित किया जाता है, उन्हें उनके धर्म के आधार पर पर्व मनाने या फिर खान-पान में करने नहीं दिया जाता है।
इन देशों में है धार्मिक कट्टरता
पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरता बहुत ज्यादा है, इसके बावजूद पोम्पियो के बार्षिक रिपोर्ट में इस बात जिक्र नहीं है। पाकिस्तान में खुले आम हिन्दुओं को प्रताड़ित किया जाता है। हाल ही में दो हिन्दू लड़कियों के साथ जबरन धर्म परिवर्तन कर शादी करने का मामला सामने आया था। इसके अलावा आसिया बीबी को प्रताड़ित किया गया, तो वहीं अलावा 40 से अधिक लोगों को मोहम्मद पैगंबर का अपमान करने का आरोप लगाकर जेल में भेज दिया गया।
पाकिस्तान में हिन्दू महिलाओं और लड़कियों के साथ धर्म के आधार पर रेप जैसी जघन्य अपराध को अंजाम दिया जाता है। वहीं कई ऐसी घटनाएं सामने आई है जिसमें गैर मुस्लिम धर्म को मानने वालों के साथ घिनौना व्यवहार किया गया। ईसाई लड़कियों के साथ जबरदस्ती और यौन दुराचार की घटनाएं आम बात है।
इसके अलावा, चीन में चीन में शिंजियांग के वीगर मुसलमान समुदाय के साथ सरकार भेदभावपूर्ण व्यवहार करती रही है। हाल में ऐसी खबरें भी सामने आई कि चीन में सैंकड़ों मस्जिदों को तोड़ दिया गया है। चीन में मुुस्लमान समुदाय के लोगों को आजादी के साथ अपने त्यौहार मनाने की भी आजादी नहीं है।
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वहीं म्यांमार में भी रोहिंग्या मुसलमानों के साथ जो हो कुछ भी हो रहा है, पूरी दुनिया के सामने है या फिर ईरान में गैर-मुस्लिम समुदायों के खिलाफ जो घटनाएं या सरकार की ओर से कार्रवाईयां होती है वह बहुत ही दर्दनाक और विभत्स होता है।
सऊदी अरब में जिस तरह एक हजार से अधिक शिया नागरिकों को सिर्फ प्रदर्शनों में भाग लेने या सोशल मीडिया पर कॉमेंट्स करने के जुर्म में कैद का सामना करना पड़ रहा है।
क्या है कारण?
दरअसल, यह पहला अवसर नहीं है, किसी अमरीकी मेहमान ने भारत में आकर इस तरह की बात कही है। पोम्पियो से पहले जब तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आए थे तब कुछ इसी तरह की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि हमें एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए और किसी के भी खान-पान व धार्मिक आजादी को लेकर कट्टरता नहीं दिखानी चाहिए। बता दें कि ओबामा में उस समय भारत में एक-दो ऐसे मामले सामने आए थे, जिसको लेकर सरकार की काफी किरकिरी हुई थी।
ऐसा समझा जाता है कि भारत पर दबाव बनाने के लिए इस तरह की रणनीति कारगर रही है। चूंकि भारत का इतिहास ऐसा रहा है कि यहां पर सभी धर्म के लोग विविधताओं के बावजूद भी मिलजूल कर रहते हैं। ऐसे में अमरीका जैसे देश को भारत में अपना पैर पसारने के लिए स्पेस की जरूरत होती है और सरकार को कमजोर किए बिना ऐसा संभव नहीं दिखता है।
लिहाजा पोम्पियो ने भी मौजूदा भारत-अमरीकी व्यापार में दरार को पाटने के लिए भारत पर दबाव बनाने के उद्देश्य से ये बातें कही है। बहरहाल, भारत सरकार ऐसे किसी भी हमले या घटनाओं का समर्थन नहीं करता है जो कि मानवता को शर्मसार करता हो।
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