ऑपरेशन ब्लू स्टार@35: देश में अपनी तरह की पहली कार्रवाई, नाम था सन डाउन
नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर सेना के ऑपरेशन ब्लू स्टार की 35वीं बरसी आज है। तनाव की आशंका को ध्यान में रखते हुए स्थानीय प्रशासन एक महीने पहले से ही सतर्क है। इतना ही नहीं, अमृतसर में गुरुवार को किसी भी अनहोनी को रोकने के लिए 5 हजार से ज्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं।
स्थानीय पुलिस संवेदनशील इलाकों पर पैनी नजर रख रही है। बता दें कि सेना ने स्वर्ण मंदिर परिसर में छिपे चरमपंथियों को खदेड़ने के लिए 6 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया था।
#Punjab: Security heightened in Amritsar city on the anniversary of operation blue star . pic.twitter.com/TcxrlkCdxl
— ANI (@ANI) June 6, 2019
सुरक्षा एजेंसियां सतर्क
ऑपरेशन ब्लू स्टार की 35वीं बरसी के मद्देनजर अमृतसर में स्थानीय सुरक्षा एजेंसियां पूरी तरह से सतर्क हैं। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक 6 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी के पहले अमृतसर पुलिस ने फ्लैग मार्च भी किया।
सीसीटीवी कैमरों के जरिए संवेदनशील इलाके की निगरानी की जा रही है। एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, बायपास सहित शहर के प्रवेश और निकास द्वारों पर पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है।
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ऑपरेशन ब्लू स्टार की क्यों पड़ी जरूरत
दरअसल, 1980 और 1990 के दशक तक पंजाब में अलग खालिस्तान की मांग को लेकर अलगाववादी गतिविधियों की वजह से कानून और व्यवस्था लड़खड़ाने लगी थी। अमृतसर का स्वर्ण मंदिर अलगाववादियों का केंद्र बन गया था।
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अलगाववादियों से स्वर्ण मंदिर को मुक्त कराने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कड़ा फैसला लिया। अमृतसर में 1981 से पवित्र स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारे के पास अपने हथियारबंद साथियों के साथ भिंडरावाला छिपा बैठा था। इंदिरा गांधी के आदेश पर सेना का यह ऑपरेशन मुख्य तौर पर 3 से 10 जून 1984 तक चला।
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Amritsar: Security heightened at the golden temple on the anniversary of Operation Blue Star. #Punjab pic.twitter.com/MciWYLb8iB
— ANI (@ANI) June 6, 2019
इस तरह ऑपरेशन ब्लू स्टार को दिया गया अंजाम
1. सन 1981 में पंजाब और असम में आतंकवादियों का मुकाबला करने की गुप्त गतिविधियों के लिए स्पेशल ग्रुप नाम से एक और यूनिट तैयार की गई। वर्ष 1982 में डायरेक्टर जनरल सिक्योरिटी ने 'प्रोजेक्ट सन-रे' शुरू किया।
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डीजी सुरक्षा ने 10वीं पैरा/स्पेशल फोर्सेज के एक कर्नल को 50 अधिकारियों और सैनिकों की एक टुकड़ी गठित करने का काम सौंपा। कर्नल ने 55, 56 और 57 कमांडो कंपनी तैयार की। इस यूनिट को स्पेशल ग्रुप नाम दिया गया। ये यूनिट रॉ प्रमुख के मातहत काम करने लगी। इसी स्पेशल ग्रुप को बाद में 'ऑपरेशन सन डाउन' के लिए तैयार किया गया।
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2. वर्ष 1983 की शुरुआत में स्पेशल ग्रुप की एक गुप्त यूनिट से सेना के छह अधिकारियों को इजरायली कमांडो फोर्स सायरत मतकल के गुप्त अड्डे पर ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। तेल अवीव में इन सैनिक अधिकारियों को सड़कों, इमारतों और गाड़ियों को बड़ी सावधानी से बनाए गए मॉडलों के बीच आतंक से लड़ने की 22 दिन तक ट्रेनिंग दी गई।
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3. फरवरी, 1984 में स्पेशल ग्रुप के सदस्यों ने श्रद्धालुओं और पत्रकारों के वेश में स्वर्ण मंदिर में घुसकर सारा नक्शा तैयार किया। आसपास के इलाकों की रेकी कर जमीनी एक्शन प्लान तैयार किया। अप्रैल, 1984 में डीजी सिक्योरिटी ने पीएम इंदिरा गांधी को गुप्त मिशन के बारे में बताया।
उन्होंने इंदिरा गांधी को बताया कि 'ऑपरेशन सन डाउन' असल में झपट्टा मारकर दबोचने की कार्रवाई है। हेलिकॉप्टर में सवार कमांडो स्वर्ण मंदिर के पास गुरु नानक निवास गेस्ट हाउस में उतरेंगे और भिंडरावाला को उठा लेंगे।
ऑपरेशन को यह नाम इसलिए दिया गया कि सारी कार्रवाई आधी रात के बाद होनी थी। लेकिन आम लोगों की मौत की आशंका से इंदिरा गांधी ने इस अभियान को हरी झंडी नहीं दी।
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4. 1 जून 1984 को ऑपरेशन सनडाउन रद्द होने के बाद ब्लू स्टार की तैयारी हुई। सीआरपीएफ और बीएसएफ ने गुरु रामदास लंगर परिसर पर फायरिंग शुरू कर दी। सेना के आदेश के तहत हो रही इस फायरिंग में कम से कम 8 लोग मारे गए।
2 जून 1984 को भारतीय सेना ने अंतरराष्ट्रीय सीमा सील कर दी। पंजाब के गांवों में आर्मी की 7 डिविजन तैनात कर दी गईं। रात होते होते मीडिया और प्रेस को कवरेज करने से रोक दिया गया।
पंजाब में रेल, रोड और हवाई सेवाएं सस्पेंड कर दी गईं। पानी और बिजली की सप्लाई रोक दी गई। विदेशियों और एनआरआई की एंट्री पर भी पाबंदी लगा दी गई।
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5. 3 जून 1984 को पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया। सेना और पैरामिलिट्री फोर्सेज की गश्त बढ़ गई। मंदिर परिसर के सभी रास्ते सील कर दिए गए। 4 जून 1984 को सेना ने भिंडरावाला के सैन्य सलाहकार शाबेग सिंह की किलेबंदी को खत्म करने की कार्रवाई शुरू कर दी। इस ऑपरेशन में करीब 100 लोग मारे गए।
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सिंह तोहड़ा को भिंडरवाला से बातचीत के लिए भेजा गया। तोहड़ा की बातचीत नाकाम रही।
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6. 5 जून 1984 को सुबह होते ही हरमंदिर साहिब परिसर के भीतर सेना की 9वीं डिविजन ने अकाल तख्त पर सामने से हमला किया। रात में साढ़े दस बजे के बाद काली पोशाक में 20 कमांडो चुपचाप स्वर्ण मंदिर में घुसे। उन्होंने नाइट विजन चश्मे, एम-1 स्टील हेल्मेट और बुलेटप्रूफ जैकेट पहन रखी थीं।
6 जून 1984 को सुबह चार बजे के आसपास तीन विजयंत टैंक लगाए गए। उन्होंने 105 मिलीमीटर के गोले दागकर अकाल तख्त की दीवारें उड़ा दीं। उसके बाद कमांडो और पैदल सैनिकों ने उग्रवादियों की धरपकड़ शुरू की।
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7. सुबह 6 बजे बजे रक्षा राज्यमंत्री केपी सिंहदेव ने आरके धवन को फोन कर सारी जानकारी दी और इंदिरा गांधी तक संदेश पहुंचाने को कहा। उन्होंने धवन को बताया कि बड़ी संख्या में सैनिक और असैनिक लोग मारे गए हैं।
7 जून 1984 को सेना ने हरमंदिर साहिब परिसर पर प्रभावी कब्जा जमा लिया। 8 जून 1984 को तत्कालीन राष्ट्रपति जैल सिंह ने स्वर्ण मंदिर का दौरा किया। उनके साथ मंदिर गए स्पेशल ग्रुप के कमांडिंग ऑफिसर, एक लेफ्टिनेंट जनरल किसी उग्रवादी निशानची की गोली से बुरी तरह घायल हो गए। 10 जून, 1984 को दोपहर तक पूरा ऑपरेशन खत्म हो गया।
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