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जब कारगिल युद्ध में शांति की पहल के लिए बुलाए गए थे दिलीप कुमार

दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसम्बर 1922 को वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार मुबंई में आकर बस गया। उनका शुरूआती जीवन तंगहाली में गुजरा। पिता के व्यापार में घाटा होने के बाद उनके परिवार पर आर्थिक संकट मंडराने लगा।

दिलीप कुमार ने बचपने से जवानी ओर बढते हुए एक कैंटीन में काम किया। जहां उऩ देविका रानी की नजर पड़ी। ये वही देविका रानी थी जिन्होनें दिलीप कुमार को अभिनेता के रूप में स्थापित करने में मदद की।

दिलीप कुमार ने ज्वार भाटा से अपने करियर की शुरूआत की। लेकिन यह फिल्म अपना जलवा नहीं बिखेर सकी। लेकिन 1947 में आई उऩकी फिल्म जुगनू। जिसने दर्शकों का ध्यान दिलीप कुमार की ओर खींचा।

इसके बाद दिलीप कुमार ने लगभग पचास फिल्मों में काम किया और सुपरस्टारों की सूची में अपना नाम दर्ज करवाया। उन्होनें दीदार, देवदास, मुगल ए आजम, अंदाज, क्रांति, विधाता, दुनिया, कर्मा, सौदागर जैसी फिल्मों में काम किया।

अभिनेता दिलीप कुमार अपने अभिनय के लिए ना सिर्फ भारत में मशहूर हुए बल्कि देश विदेश में शोहरते बटोरी। भारत के अलावा उन्हें पाकिस्तान में दर्शकों का बराबर प्यार मिला। यह कहना गलत नहीं होगा कि सरहद के दोनों तरफ दिलीप कुमार के चाहने वाले एक समान थे।

दिलीप कुमार भारत पाकिस्तान के बीच हुए अबतक के प्रत्येक युद्ध के साक्षी रहे। 1999 में कारगिल युद्ध में उन्हें शांति दूत के दौर पर प्रयोग किया गया।

उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। कारगिल क्षेत्र में पाकिस्तानी सैनिकों की गतिविधियों को देखते हुए। उन्होनें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को फोन मिलाकर, शांति वार्ता के बीच इस सीमा उल्लंघन का कारण पूछा।

इसी दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने दिलीप कुमार की ओर फोन बढाया। दिलीप कुमार ने नवाज शरीफ से बात करते हुए कहा कि कृपया इस अकारण उपजे संघर्ष को तुरंत खत्म करने का प्रयास किया जाए। पाकिस्तान के साथ जैसी ही सीमा विवाद बढ़ता है भारत के मुसलमान समुदाय असुरक्षित महसूस करने लगता है। दिलीप कुमार की आवाज सुनकर नवाज शरीफ चौंक गए थे।

बता दें कि दिलीप कुमार खुद भी मुस्लिम समुदाय से आते थे। उनकी असली नाम युसुफ था। कारगिल युद्ध में कड़े संघर्ष के बाद भारतीय सैनिकों ने पाक सैनिकों को उनकी सीमा में खदेड़ दिया था।



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