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रक्षा मंत्रालय ने बेकार पड़ी जमीन को बेचने का मन बनाया, विभागों को लिखा पत्र

नई दिल्ली। देश भर में मौजूद रक्षा मंत्रालय की जमीनों के कई टुकड़ों का उपयोग न के बराबर है। अब मंत्रालय हजारों एकड़ भूमि को बेचने की तैयारी में लगा हुआ है। तीनों सशस्त्र बलों, डीआरडीओ, तटरक्षक बल, आयुध निर्माण बोर्ड समेत अन्य विभागों को एक पत्र भेजा गया है। ये पता लगाने की कोशिश हो रही है कि बीते दो दशकों में उनके लिए कितनी जमीन की आवश्यकता थी। इसके साथ वहां कौन सी परियोजनाएं चलाई जा रही हैं।

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बीते छह मई को भेजे रक्षा मंत्रालय के एक पत्र में कहा गया है कि शेष जमीन को तीन माह के अंदर संकलित किया जा सकता है। इसे महानिदेशक रक्षा संपदा (डीजीडीई) के साथ अटैच किया जा सकता है।

कई जमीनें खाली पड़ीं

इन जमीन पर कुछ पुराने ब्रिटिश समय के कैंपिंग ग्राउंड हैं,जिनका उपयोग लंबे अभियानों को जारी रखने के लिए होता था। कुछ जमीन पर द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) में स्थापित पुराने हवाई अड्डे हैं। कुछ जमीन अब नागरिक क्षेत्रों मेें आती हैं। इसका कुछ ही हिस्सा सैन्य उद्देश्य के काम में होता है। कुछ जमीन पर आयुध कारखानों के पास हैं।

अस्थायी रूप से उपयोग में लाया जाता है

रक्षा मंत्रालय खाली जमीन को दो वर्गों में पहचान करने पर विचार कर रहा है। पहला A-2 और दूसरा B-4 श्रेणी है। क्लास ए-2 भूमि वास्तव में सैन्य अधिकारियों द्वारा उपयोग या कब्जा नहीं किया जाता है बल्कि अस्थायी रूप से उपयोग में लाया जाता है। वहीं क्लास बी-4 भूमि वह है जो किसी अन्य वर्ग की भूमि में शामिल है।

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छह मई को रक्षा मंत्रालय को लिख पत्र

यह पत्र सुमित बोस समिति की सिफारिशों पर कार्रवाई करने के रक्षा मंत्रालय के निर्णय के आधार पर लिखा गया है। भारत सरकार के पूर्व राजस्व सचिव ने दिसंबर 2017 में 131 सिफारिशों के साथ एक रिपोर्ट पेश की थी। छह मई को भेजे रक्षा मंत्रालय को पत्र में कहा गया है कि खाली भूमि और रक्षा भूमि के उपयोग के संबंध में बोस समिति की सिफारिशों के एक खंड को लागू करने का निर्णय लिया गया है।



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