Breaking News

दावा: कोरोना वायरस का दोहरा और तिहरा स्वरूप एक जैसा, दोनों टीके भी उन पर प्रभावी

नई दिल्ली।

वैज्ञानिकों की मानें तो भारत में कोरोना वायरस (Coronavirus) के सामने आए दोहरे और तिहरे प्रारूप लगभग एक जैसे ही हैं। यही नहीं, देश में अभी जो दो टीके कोवैक्सीन और कोविशील्ड इस संक्रमण को दूर करने के लिए लगाए जा रहे हैं, वे भी इनके खिलाफ प्रभावी हैं।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोमेडिकल जीनोमिक्स के डायरेक्टर सौमित्र दास के मुताबिक, दोहरे और तिहरे प्रारूप यानी डबल और ट्रिपल म्यूटेंट का संदर्भ कोरोना वायरस के समान स्वरूप बी-1.617 के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। सौमित्र दास ने कहा कि डबल और ट्रिपल म्यूटेंट एक ही हैं। ये अलग-अलग संदर्भ में इस्तेमाल किए गए हैं। बता दें कि कल्याणी स्थित द नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोमेडिकल जीनोमिक्स, जैव प्रौद्योगिकी विभाग के तहत आने वाला संस्थान है और देश की उन दस प्रयोगशालाओं में एक है, जो कोरोना वायरस के जीनोम अनुक्रमण में शामिल हैं।

यह भी पढ़ें:- जानिए कोरोना वायरस के खिलाफ भारत की दोनों वैक्सीन कैसे और कितनी सुरक्षित!

वहीं, केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से गत रविवार को प्रोनिंग को लेकर भी गाइडलाइन जारी की गई। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, कोरोना संक्रमित मरीज के शरीर में यदि ऑक्सीजन का लेवल कम होता है और वह घर में आइसोलेशन में है, तो इस प्रक्रिया का इस्तेमाल करके वह शरीर में ऑक्सीजन का लेवल बढ़ा सकता है। स्वास्थ्य मंत्राल की ओर से जारी गाइडलाइन के अनुसार, प्रोनिंग वैसे तो पूरी तरह सुरक्षित और आजमाई हुई प्रक्रिया है, मगर कुछ खास मरीजों के लिए यह प्रक्रिया खतरनाक भी हो सकती है। इसमें गर्भवती महिलाएं भी शामिल है।

स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी की गई गाइडलाइन के अनुसार, गर्भवती महिलाओं को प्रोनिंग नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा, दिल से जुड़ी गंभीर बीमारी से पीडि़त मरीजों को भी प्रोनिंग नहीं करने की सलाह दी गई है। वहीं, कोरोना संक्रमित डीप वीनस थ्रोम्बेसिस से पीडि़त मरीज, जिसका बीते 48 घंटे के भीतर कोई इलाज या सर्जरी हुई है, उन्हें भी यह प्रक्रिया नहीं करनी चाहिए। ऐसे व्यक्ति जिन्हें रीढ़ की हड्डी से जुड़ी कोई समस्या है या जिन्हें पेल्विक फै्रक्चर है अथवा शरीर में किसी और गंभीर रोग से पीडि़त हैं, तो उन्हें इस प्रकिया को नहीं करना चाहिए।

यह भी पढ़ें:- ऑक्सीजन की होने वाली कमी के बारे में केंद्र सरकार को बीते नवंबर में दी गई थी जानकारी, फिर भी इस पर ध्यान नहीं दिया

कोरोना संक्रमित कई मरीजों की मौत एआरडीएस यानी एक्यूट रेसपिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम की वजह से होती है। यही सिंड्रोम उन रोगियों की मौत कारण भी बनता है, जिन्हें एन्फ्लूएंजा या निमोनिया ज्यादा गंभीर स्तर पर होता है। करीब 8 साल पहले फ्रांसिसी डॉक्टरों ने न्यू इंग्लैंड जनरल मेडिसिन में एक लेख प्रकाशित किया था कि एआरडीएस की वजह से जिन मरीजों को वेंटिलेटर लगाना पड़ा हो, उन्हें पेट के बल लिटाना चाहिए। इससे उनकी मौत को खतरा कम हो जाता है।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal
Read The Rest:patrika...

No comments