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मिसाल: खून नहीं मिलने से पापा की चली गई थी जान, बेटी ने बना दी ब्लड डोनर्स की श्रंखला

नई दिल्ली।

पुष्पा द्विवेदी तब तेरह वर्ष की थीं। उनके पिता हॉस्पिटल में भर्ती थे। तमाम कोशिशों के बावजूद खून नहीं मिल पाया और पिताजी की मृत्यु हो गई। उनके देहांत के बाद पुष्पा ने कुछ ऐसा करने की ठानी कि खून की कमी से कोई अन्य मौत के मुंह में न जाए। लेकिन कुछ समय बाद मां को कैंसर हो गया। उन्हें भी खून न मिल पाने की परेशानी झेलनी पड़ी। कई मुश्किलों के बाद जब मां रिकवर हो गईं तो पुष्पा ने रक्तदान के लिए काम शुरू किया और ब्लड डोनर्स की एक चेन तैयार कर ली।

कैंसर और थैलेसीमिया मरीज पहले

पुष्पा के मुताबिक, डोनर्स ग्रुप कैंसर, थैलेसीमिया मरीजों के लिए तत्परता से मदद करते हैं। सूचना मिलते ही ग्रुप का हर मेंबर एक्टिव हो जाता है। खून मिलने की व्यवस्था के बाद परिजनों के चेहरों की खुशी सुकून देती है।

बच्चों-महिलाओं की मदद

युवा अवस्था से ही समाजसेवा में जुटीं पुष्पा के काम को बायोग्राफी के रूप में 'गोल्डन बुक ऑफ अर्थ' में जगह मिली है। कच्ची बस्तियों और ग्रामीण क्षेत्रों में कन्या भ्रूण हत्या, महिलाओं के साथ हिंसा के खिलाफ व पुनर्वास केंद्रों में बच्चों की शिक्षा पर काम कर रही हैं।

मध्यप्रदेश और राजस्थान के कई शहरों में बनाए हैं डोनर ग्रुप

पुष्पा द्विवेदी (28) रेलवे में कार्यरत हैं। उन्होंने बताया कि जबलपुर में उन्होंने ब्लड नाम से एक ग्रुप की शुरुआत की, जिसमें सभी सदस्य रेलवे के कर्मचारी ही हैं। दूसरे शहरों में भी इस ग्रुप को एक्टिव करने के लिए पहचान वालों से ग्रुप बनवाने की कोशिश है। इसी तरह जबलपुर के साथ भोपाल, कटनी, सागर, कोटा और राजस्थान के कई शहरों में ब्लड नाम से ग्रुप चला रही हैं, जिसकी कोऑर्डिनेटर वे खुद हैं।



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