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यह महिला बनी दिल्ली एनसीआर में महिलाओं की 'सोनू सूद', कोविड फैमिलीज के घर पहुंचाती हैं खाना

नई दिल्ली। कोरोना काल में बॉलीवुड से सोनू सूद ऐसे सेलीब्रेटी सामने निकलकर आए जिन्होंने लाखों करोड़ों लोगों को उनके घर पर पहुंचाने में मदद की। अब वो एक ऐसे प्लेटफॉर्म पर काम कर रहे हैं, जिससे कोविड काल में अपनी नौकरी खो चुके लोगों को एक बार फिर से रोजगार मिल सके।

सोनू सूद बॉलीवुड के सुपरस्टार हैं। जिनकी हरेक हरकत को मीडिया कवरेज मिलता है, लेकिन कोविड काल के दौरान कई ऐसे आम लोग रहे, जिन्होंने तकलीफ में रहे लोगों की काफी मदद की। आज भी उनकी मदद बादस्तूर जारी है। ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी निशा चोपड़ा की है।

दिल्ली की रहने वाली निशा चोपड़ा दिल्ली एनसीआर में ऐसे घरों को खाना पहुंचाने में मदद कर रही हैं, जो कोविड से ग्रस्त हैं। जो लोग घरों से बाहर नहीं जा सकते हैं और जिन्हें भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

आखिर निशा चोपड़ा के मन में ऐसा करने की भावना कैसे पैदा हुई? ऐसी कौन सी घटना ने उन्हें झकझौरा कि उन्हें सोसायटी में रह रहे ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए? आइए आपको भी बताते हैं...

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जब निशा चोपड़ा के पति हो गया था कोविड
बात अप्रैल की है, जब पूरा देश कोरोना वायरस की चपेट में था और सख्त लॉकडाउन लगा हुआ था। उस समय निशा चोपड़ा के पति को कोविड हो गया था। जिसके बाद पूरे परिवार को सेल्फ आइसोलेशन में जाना पड़ा था। जिसकी वजह से पूरे दो हफ्तों तक बच्चों को फलों पर रहना पड़ा था।

जिसके बाद उन्हें अनुभव हुआ कि कोविड से प्रभावित परिवारों के लिए भोजन उपलब्ध कराना सोसायटी में एक बड़ी समस्या बन गया है। क्योंकि उनके परिवार का कोई सदस्य बाहर नहीं जा सकता है।

अगर बाहर जाए भी तो उनसे सभी दूरी बनाकर रखेंगे। जिसके बाद उन्हें इस बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया कि जिस समस्या का सामना उन्हें करना पड़ा, वो किसी और को ना करना पड़े। खासकर उन लोगों को जो उनके घर के आसपास रहते हैं। मौजूदा समय में उनके पास 10 से अधिक महिलाओं की एक टीम है, जो हर दिन कम से कम 100 परिवारों के लिए खाना बनाती है और मुफ्त में उनके घर पर पहुंचाती है।

केवल एक ही चीज है, जो टीम बदले में मांगती है और वो है एक वादा है। वो ये कि लाभार्थी इसी तरह की कठिनाइयों में पाए गए अपने आसपास के क्षेत्र में एक और परिवार को भोजन उपलब्ध कराने में मदद करेंगे।

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कुछ इस तरह से हुई शुरूआत
निशा चोपड़ा के अनुसार उनके पति महामारी की शुरुआत में कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए थे और उन्हें क्वारीनटाइन होना पड़ा था। जब उन्होंने अपने बच्चों को भोजन के लिए संघर्ष करते देखा, तो महसूस किया कि एक ही समस्या का सामना कर रहे कई अन्य परिवार भी होंगे।

उन्होंने बताया कि मैंने कुछ समय लिया और भोजन पकाने के लिए पर्याप्त संख्या में महिलाओं को एकत्र किया। हम सभी अपने घरों में ऐसा करते हैं। करीब तीन महीने पहले इस कार्यक्रम में तेजी आई है। उनकी यह कोशिश कामयाब हुई और सभी को इसके बारे में जानकारी हुई।

उन्हें कई सारे कॉल्स आने लगे। निशा ने बताया कि हमें कुछ वॉलेंटियर्स भी मिले। जिन्होंने भोजन वितरण में मदद की, लेकिन उनमें से कई एक के बाद एक बीमार पड़ गए, और अब मैंने खुद विभिन्न घरों से भोजन एकत्र करने और फिर कुछ वॉलेंटियर्स के साथ बाहर जाने की जिम्मेदारी ली है।

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अभी सिर्फ साउथ दिल्ली और आसपास
शुरुआत में उन्होंने और उनकी टीम ने पूरे दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र को कवर करने का प्रयास किया था। बाद में वितरण टीम में कमी के कारण उन्हें दक्षिणी दिल्ली के क्षेत्रों जैसे कि सरिता विहार, चित्तरंजन पार्क और नोएडा और फरीदाबाद पर ही ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

निशा चोपड़ा ने बताया कि अगर अन्य स्थानों में किसी को हमारी सेवाओं की सख्त जरूरत होती है और हमसे मदद मांगती है, तो हम उन्हें दिन में एक बार भोजन देने में सक्षम होते हैं, दो बार नहीं।

चोपड़ा ने कहा, "हम लोगों से भोजन के लिए कुछ भी शुल्क नहीं लेते हैं। हम उनसे केवल यह वादा करने के लिए कहते हैं कि जैसे हमने उनकी जरुरत के समय में मदद की थी, वैसे ही उन्हें भी अपने आसपास के अगले परिवार की सहायता के लिए आना होगा। हालांकि, हम बुजुर्गों को ऐसा करने के लिए नहीं कहते क्योंकि यह उनके लिए कठिन होगा।

रोज 100 परिवारों का लक्ष्य
निशा चोपड़ा कहती हैं कि समूह उन घरों को ज्यादा प्राथमिकता देता है जहां बुजुर्ग और बच्चे होते हैं। हमने प्रति दिन कम से कम 100 परिवारों को भोजन खिलाने का लक्ष्य रखा है। भले ही परिवारों में कितने सदस्य हों।

जैसे ही हमारे पास अधिक स्वयंसेवक और भोजन बनाने वाले होंगे पूरी दिल्ली में इस प्रोग्राम की शुरुआत करेंगे। वो ऐसा क्यों कर रही हैं? इस सवाल के जवाब में वो कहती हैं कि मुझे ऐसा करने में संतुष्टी मिलती है।



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