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रोज हवाई सफर करने वालों ने दुनिया को खतरे में डाला, दुनिया के एक फीसदी लोगों ने हवा में घोला करोड़ों टन जहर

नई दिल्ली।

प्रदूषण पूरी मानवता के लिए बड़ी चुनौती है। कहीं पराली तो कहीं बिजली संयंत्रों से निकलने वाला धुआं जीवन के लिए संकट बन रहा है। वाहन ही नहीं विमान भी हवा में जहर उगल रहे हैं। हवाई सफर करने वाले दुनिया के महज एक फीसद लोगों के लिए विमानन कंपनियों ने करोड़ों टन कार्बन डाई ऑक्साइड हवा में छोड़ दी है। पर्यावरण को नुकसान की भरपाई बिना अरबों की सब्सिसडी कंपनियों को दी जा रही है।

स्वीडन की लिनेएस यूनिवर्सिटी के स्टीफन गॉसलिंग की टीम ने 2018 के आंकड़ों पर एक शोध में यह खुलासा किया है। गॉसलिंग ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की समस्या लच्छेदार भाषणों से नहीं सुलझेगी। विमान उद्योग को रीडिजाइन करने की जरूरत है। शुरुआत उन्हीं लोगों से होनी चाहिए जो बार-बार हवाई सफर करते हैं।

औसत उम्र 5.2 साल घटी

प्रदूषण से भारत में लोगों की औसत आयु 5.2 साल कम हुई है। अमरीका की शिकागो यूनिवर्सिटी के हालिया शोध में यह खुलासा किया गया है। स्टडी में ऐसे यात्री शामिल हैं, जिन्होंने एक साल में 56 हजार किमी हवाई सफर किया। ग्लोबल एनवायरनमेंट चेंज में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार अमरीकी यात्रियों से सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण हुआ। चीन भी ज्यादा पीछे नहीं है।

कहीं ज्यादा ठंड, तो कहीं गर्मी

धरती का तापमान प्रभावित विमानों से निकला धुआं बादलों में घुलता है। इससे धरती का तापमान प्रभावित होता है। कहीं बहुत ठंडी तो कहीं ज्यादा गर्मी पड़ती है। विमानों की आवाजाही से ध्वनि प्रदूषण भी होता है, जिस कारण हार्ट अटैक का खतरा बढ़ गया है। नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें भी हवाई जहाज से निकलती है।

पर्यावरण की क्षति

रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कार्बन उत्सर्जन से पर्यावरण को 10 हजार करोड़ डॉलर से ज्यादा का नुकसान पहुंचा। भरपाई नहीं हुई क्योंकि समाज के समृद्ध तबके को सब्सिसडी मिलती है। ऐसे हवाई यात्रा करने वाले लोगों से कर वसूलने का सुझाव दिया गया है।

विकल्पों की तलाश

वायु प्रदूषण कम करने के लिए नवाचार किए जा रहे हैं। प्लास्टिक के हल्के विमान बनाने की दिशा में प्रयास चल रहा है। बिजली से उडऩे वाले हवाई जहाज का परीक्षण पिछले साल किया जा चुका है। सपना हकीकत में कब त दील होगा, यह देखना बाकी है



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