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US Election 2020: अमरीका का राष्ट्रपति कौन हो, इसमें निर्णायक भूमिका अदा करेगा भारत

वाशिंगटन.

संयुक्त राज्य अमरीका में इंडियन अमरीकन 100,000 की औसत आय के साथ यूएसए में सबसे अधिक कमाई करने वाले नागरिकों के रूप में उभर रहे हैं। हालांकि, संयुक्त राज्य अमरीका में राष्ट्रीय औसत आय लगभग दुगुनी है। पिछले राष्ट्रपति चुनावों के दौरान जहां डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए भारतीय अमरीकी सबसे अधिक समर्थक थे। तब से विशेष रूप से ह्यूस्टन में 2019 के हाउडी मोदी ईवंट के बाद यह परिदृश्य बदल गया है, जबकि भारत को दुनिया भर में अधिक दर्शनीय व लोकप्रिय बनाने के लिए पीएम मोदी को व्यापक रूप से श्रेय दिया जाता है।

अमरीका के राष्ट्रपति चुनावों के दौरान संयुक्त राज्य अमरीका के मतदाताओं की आबादी में 1 प्रतिशत शामिल भारतीय सबसे बड़े योगदानदाताओं में से एक हैं। टेक्सास, मिशीगन और पेन्सिलवेनिया जैसे प्रमुख स्विंग राज्यों में भारतीय अमरीकी मतदाताओं की महत्वपूर्ण संख्या है। सभी बड़े दक्षिण एशियाई समुदाय हैं और सन 2020 के चुनावों में जीत का मार्जिन कम होने की संभावना है, यहां तक कि इसमें छोटे बदलाव भी निर्णायक हो सकते हैं। अमरीकी इलेक्टोरल वोटिंग सिस्टम के अनुसार उम्मीदवार को इलेक्टोरल कॉलेज के 538 सदस्यों में से 270 इलेक्टोरल वोट की जरूरत होती है।

हां, एक बात का जिक्र करना चाहूंगा कि अत्यधिक भारतीय जनसंख्या वाले न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी और कैलिफोर्निया को डेमोक्रेटिक स्टेट माना जाता है और 2020 के चुनावों में इसका अधिक प्रभाव पडऩे की संभावना नहीं नजर आ रही है, जबकि स्विंग राज्यों में 2020 के चुनावों के दौरान यह निर्णायक रहेगा। अब सवाल यह उठता है कि भारत के लिए कौन अधिक लाभदायक होगा। हमने यूएसए में पिछले 30 वर्षों के दौरान देखा है कि इंडो-यूएसए संबंधों पर न तो डेमोक्रेट्स और न ही रिपब्लिकन ही कोई बड़ा प्रभाव डालते हैं।

यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि भारत सरकार अपने अमरीकी समकक्ष के साथ अपने संबंधों का प्रबंधन कैसे करती है। यह बात दीगर है कि पीएम मोदी भारतीय अमरीकी मतदाताओं और भामाशाहों को ट्रम्प लॉबी की ओर मोडऩे का माद्दा रखते हैं।

यूएसए में भारतीय अमरीकी कम्युनिटी हॉस्पिटेलिटी सैक्टर, हैल्थ केयर और आईटी सैक्टर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। दोनों पक्षों पर इन सैक्टर्स के मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए भारी दबाव है। ज्यादातर डेमोक्रेट्स ने अश्वेत जनसंख्या में से लगभग 14 प्रतिशत मतदाताओं को आकर्षित किया है। जबकि रिपब्लिकन ज्यादातर 14 प्रतिशत एशियाई जनसंख्या पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जो अब ट्रम्प की ओर बढ़ सकते हैं।

जिस तरह भारत के चुनाव में भाजपा ने हिंदू मतदाताओं को टारगेट किया और बहुमत से जीती, वैसे ही ट्रम्प अन्य अमरीकियों को टारगेट कर रहे हैं। इन चुनावों में यह फैक्टर अहम कारक साबित हो सकता है। दूसरे शब्दों में, ट्रम्प 72 प्रतिशत श्वेत जनसंख्या पर दांव लगा रहे हैं, जो इन चुनावों में निर्णायक साबित होगा। इधर, जैसे-जैसे राष्ट्रपति चुनाव के दिन नजदीक आ रहे और कोविड -19 के मामले बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे 50 प्रतिशत से अधिक मतदाता अब मेल से वोट देने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और अमरीकी इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है।

ट्रम्प केवल अमरीकी अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और कोरोना के लिए चीन को दोषी ठहरा रहे हैं। बाइडेन संयुक्त राज्य अमरीका में समानता और जातिवाद पर जोर दे रहे हैं। एक ओर डेमोक्रेट अप्रवासी नीति पर उदार हैं। वहीं ट्रम्प स्थानीय रोजगार पर जोर दे रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि अमरीका के सकल घरेलू उत्पाद और बेरोजगारी की दर महामारी से पहले थी और ट्रम्प इसके लिए सारे श्रेय लेना चाहते हैं। जबकि बाइडेन भी कोरोना से निपटने के लिए ट्रम्प को दोषी ठहरा रहे हैं। सबसे खराब संकट के दौर में 220,000 अमरीकियों को इसका नुकसान उठाना पड़ा है।

बहरहाल अमरीका के राष्ट्रपति चुनावों का परिणाम ही सही तस्वीर बताएगा। हालांकि मीडिया अभी भी बाइडेन को लीड के रूप में दिखा रहा है, लेकिन कोई आश्चर्य की बात नहीं कि पिछले चुनावों की तरह हम ट्रम्प को सत्ता में वापस देखें। हम देख रहे हैं कि अगले कुछ दिन इस ऐतिहासिक ईवंट को कैसे एक नई शक्ल मिल सकती है।

- दीपक कावडिय़ा, एनआरआई फैडरेशन यूएसए से जुड़े राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषक.



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