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Rajasthan Political Crisis: इतना सन्नाटा क्यों है भाई!

शादाब अहमद/नई दिल्ली। राजस्थान के सत्ता संग्राम ( rajasthan political crisis ) को चलते हुए 20 दिन से अधिक हो चुके हैं। इसके बावजूद दिल्ली के सियासी गलियारों में अजीब खामोशी छाई हुई है। राजस्थान के सत्ताधारी दल कांग्रेस ( Congress ) हो या फिर विपक्षी भाजपा ( Bhartiya Janata Party ) व बागी सचिन पायलट ( Sachin Pilot ) खेमा, हर किसी ने खामोशी को अपना रखा है। नेताओं की यह खामोशी आने वाले दिनों में होने वाली तूफानी सियासत की ओर संकेत कर रही है।

लगातार कई राज्यों में सरकार गंवाने के बाद अब कांग्रेस राजस्थान में संघर्ष कर रही है। कांग्रेस आलाकमान ने नेताओं को सरकार बचाने की जिम्मेदारी तो दी है, लेकिन खुद ने इससे फिलहाल दूरी बना रखी है। इसी तरह भाजपा की नजर राजस्थान में गहलोत सरकार गिराकर खुद की सरकार बनाने पर है, लेकिन दिल्ली में बैठे राष्ट्रीय नेता इस पर कुछ बोलने की जल्दबाजी नहीं कर रहे हैं। उधर, बगावत पर उतरे सचिन पायलट खेमा भी चुप्पी साध कर दिल्ली-एनसीआर की होटल में बैठ गया है।

कांग्रेस: खामोशी से निकलेगा रास्ता

हर मौके पर बेबाकी से भाजपा को घेरने वाले पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ( Rahul Gandhi ) ने राजस्थान को लेकर सिर्फ दो बार टिप्पणी की है। इसके अलावा उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ( Ashok Gehlot ) या बागी सचिन पायलट को लेकर कुछ भी नहीं कहा है। इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ( Ashok Gehlot,Sonia Gandhi ) का भी बयान नहीं आया है। जबकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी समेत सीडब्ल्यूसी के अन्य सदस्यों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

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कुछ दिन पहले तक वरिष्ठ नेता अहमद पटेल और पी चिदंबरम की पायलट से बातचीत की खबरें तो सामने आईं, लेकिन खुलकर यह भी नहीं बोले। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि राजस्थान को लेकर मुख्यमंत्री गहलोत खुलकर बयानबाजी कर रहे हैं। जबकि रणनीति के तहत दिल्ली में खामोशी बना रखी है।

कांग्रेस नेताओं का मानना है कि राजस्थान में सरकार बेहद मुश्किल में है। विधायकों की संख्या में मामूली अंतर है। ऐसे में कांग्रेस के बड़े नेता सबसे पहले राजस्थान सरकार के पक्ष में अंक गणित को पक्का करना चाहते हैं। पायलट के खिलाफ बयानबाजी नहीं कर उन्हें पार्टी में आने का मौका दे रहे हैं। यदि वह नहीं मानते हैं तो कांग्रेस कुछ बागी विधायकों को पायलट खेमे से निकालने की कोशिश करेगी।

कौन सामने और कौन पीछे
अशोक गहलोत, अविनाश पांडे, रणदीप सुरजेवाला, अजय माकन, कपिल सिब्बल ने सामने आकर बयान दिए। जबकि अहमद पटेल, केसी वेणुगोपाल, पी चिदंबरम, मुकुल वासनिक, राजीव सातव पर्दे के पीछे सक्रिय हैं।

भाजपा: कांग्रेस के अंदरूनी झगड़ा बताने की रणनीति

भाजपा ने मध्यप्रदेश की तरह राजस्थान में भी सरकार के संकट के लिए कांग्रेस के अंदरूनी झगड़े को जिम्मेदार बताने की रणनीति अपना रखी है। यही वजह है कि मध्यप्रदेश में जिस तरह शिवराज सिंह चौहान को आक्रामक किया गया था, उसी तरह राजस्थान में केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को पार्टी ने खासा मुखर किया हुआ है।

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राजस्थान में ईडी, आयकर व सीबीआई के छापे भी लगातार मारे गए। जबकि संगठन या केन्द्र सरकार स्तर पर राजस्थान को लेकर खामोशी अपना रखी गई है। यहां तक कि मुख्यमंत्री गहलोत ने गृह मंत्री अमित शाह ( Amit Shah ) के साथ मंत्री पीयूष गोयल और धमेन्द्र प्रधान पर सीधे तौर पर सरकार गिराने की साजिश करने का आरोप लगा दिया, लेकिन पार्टी के किसी भी राष्ट्रीय नेता ने इस पर पलटवार नहीं किया।

सूत्रों ने बताया कि राजस्थान को लेकर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ( JP Nadda ) ने कई दौर की बैठकें तक कर ली हैं, लेकिन सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा। पर्दे के पीछे राज्यपाल कलराज मिश्र से भी लगातार रिपोर्ट ली जा रही है। पार्टी राष्ट्रपति शासन को एक विकल्प के रूप में देख रही है।

हालांकि पार्टी नेताओं का मानना है कि राजस्थान में सरकार संकट में जरूर है, लेकिन भाजपा भी फिलहाल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में राजस्थान में सरकार बच गई तो रणनीति विफल होने का ठीकरा भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व अपने सिर नहीं लेना चाहता है। इसके चलते राजस्थान को छोडक़र अन्य नेताओं को इस पर बयानबाजी करने से बचने की हिदायत दी हुई है।

कौन सामने और कौन पीछे

केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, ओम माथुर, सतीश पूनिया सामने बयान दे रहे हैं तो गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, मंत्री पीयूष गोयल, धमेन्द्र प्रधान, भूपेन्द्र यादव पर्दे के पीछे सक्रिय हैं।

पायलट: चुप्पी साधकर भविष्य पर नजर

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बागी सचिन पायलट के साथ कांग्रेस के 19 और निर्दलीय 3 विधायक साथ हैं। पायलट फिलहाल खुद को कांग्रेस में रहकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की खिलाफत कर रहे हैं। जबकि आलाकमान या पार्टी के खिलाफ अब तक कोई बयान नहीं दिया गया है। पायलट ने खुद एक बार कुछ मीडिया साक्षात्कार में गहलोत व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ बयान दिया। साथ ही भाजपा में जाने से इनकार किया।

उधर, गहलोत व उनके समर्थक मंत्रियों ने पायलट पर कई आरोप लगाए, लेकिन पायलट ने इन पर भी प्रतिक्रिया नहीं दी। हालांकि उनके समर्थक विधायकों ने पलटवार किया। आरोपों का जवाब नहीं देना भी पायलट की रणनीति है। सूत्रों ने बताया कि पायलट की भविष्य पर नजर है। कांग्रेस के खिलाफ बयान नहीं देकर उन्होंने सभी विकल्प खोल रखे हैं। बसपा से कांग्रेस में शामिल होने वाले विधायकों के मामले में कोर्ट से यदि सरकार को राहत मिल गई तो पायलट को पार्टी के साथ जाने की रणनीति पर आगे बढऩा होगा।

ऐसे में विधानसभा सत्र में शामिल होकर पार्टी के पक्ष में वोट डाल कर बागी विधायकों को अपनी सदस्यता बचाने का सबसे बड़ा विकल्प होगा। इसके बाद अगले कुछ महीनों में पायलट अधिक संख्या में विधायकों को साथ लेकर सत्ता परिवर्तन आसानी से कर सकते हैं।

यहां पर सचिन पायलट, दीपेन्द्र सिंह शेखावत, रमेश मीणा, बृजेन्द्र ओला पर्दे के पीछे सक्रिय हैं जबकि दीपेन्द्र सिंह शेखावत, रमेश मीणा, भंवरलाल शर्मा, मुरारीलाल मीणा पहले बयान देने के बाद अब खामोश हैं।



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