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पढ़ाई आनंद दे और रोजगार भी: नई शिक्षा नीति पर K. Kasturirangan के साथ Patrika की खास बातचीत

मुकेश केजरीवाल

पत्रिका- मौजूदा शिक्षा व्यवस्था की किन बड़ी कमियों को नई शिक्षा नीति से दूर किया जा सकेगा?

पिछले 30 वर्षों में सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक और राजनीतिक क्षेत्र में बहुत सारे बदलाव आए हैं। बहुत तरह की तकनीक विकसित हो गई हैं, जिनका समाज पर भी बहुत प्रभाव दिख रहा है। नई शिक्षा नीति इन बदलावों के साथ जुड़ने का प्रयास भी है। ताकि बदली जरूरतों और आने वाली चुनौतियों के अनुरूप 21वीं सदी के भारत का निर्माण हो सके।

पत्रिका- क्या नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद पांचवीं तक अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई बंद कर दी जाएगी? क्या बच्चे इसे पांचवीं तक सिर्फ एक भाषा विषय के तौर पर पढ़ सकेंगे?

हालांकि नई नीति में शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा के उपयोग की सिफारिश की गई है, लेकिन इसमें मातृ भाषा, स्थानीय भाषा और क्षेत्रीय भाषा का विकल्प दिया गया है। भाषा नीति का मुख्य आधार तीन भाषा फार्मूला है। इससे छात्र को दूसरी भाषाओं (मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा) के साथ अंग्रेजी को भी पढ़ने की पूरी छुट होगी। यह नीति छात्रों को अंग्रेजी सीखने या उसमें महारथ हासिल करने में किसी तरह नहीं रोकती।

पत्रिका- क्या प्राइवेट स्कूलों में भी पांचवीं तक अंग्रेजी मीडियम से पढ़ाई नहीं हो पाएगी? कुछ सरकारी स्कूल अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाते हैं, उनका क्या होगा? मिडिल और सेकेंड्री स्कूल में अंग्रेजी की क्या स्थिति होगी?

जैसा कि मैने कहा कि आगे की क्लास में जरूरत हो तो अंग्रेजी की जरूरत हो तो उसकी व्यवस्था की जा सकती है। शिक्षा नीति इसमें कहीं से कोई बाधा नहीं डालती।

पत्रिका- वो समय कब आएगा, जब स्कूल-कॉलेज सिर्फ किताबी ज्ञान और परीक्षा पर जोर देने की बजाय हमारी अपनी समस्याओं के हल निकालने, जीवन जीने का तरीका सीखने और इनोवेशन के लिए प्रेरित कर सकेंगे?

नई शिक्षा नीति में स्कूल-पूर्व शिक्षा से शुरुआत कर उच्च शिक्षा तक इस बात पर ध्यान दिया गया है। ऐसे बदलाव के लिए शिक्षक, पाठ्यक्रम, किताब लेखन और ढांचागत सुविधाओं आदि हर जगह पर काफी तैयार की जरूरत होती है। इस पूरे बदलाव में राज्यों की भूमिका बहुत अहम होगी। यह इस पर भी निर्भर करेगा कि वे कितनी परिपक्वता और रफ्तार से इसे करते हैं। अगले 3-4 साल लग सकते हैं। बच्चों की रचनात्मक और इनोवेटिव सोच को बढ़ावा देने की दिशा में बड़ा बदलाव होगा।

पत्रिका- क्या नंबर की होड़ और ट्यूशन व कोचिंग पर निर्भरता खत्म होगी? छात्र ना तो पढ़ाई को एंज्वाय कर पा रहे हैं, ना ही पढ़ाई के बाद नौकरी मिल रही है।

मौजूदा शिक्षा व्यवस्था की यह एक बहुत बड़ी कमी है। इसलिए हमने शुरुआत के पांच वर्ष की फाउंडेशन शिक्षा की व्यवस्था की है।

ऐसी व्यवस्था की गई है कि छात्र का आकलन सिर्फ साल के अंत में एक परीक्षा से नहीं हो, बल्कि उसकी रचनात्मकता का संपूर्ण आकलन हो। साथ ही छात्र के लिए पढ़ाई और उसके आकलन दोनों के लिहाज से पूरा वर्ष ज्यादा आनंददायक भी हो और इससे रोजगार भी हासिल हो सके।

पत्रिका- सरकारी नीतियां कई बार कागजों में ही रह जाती हैं। यह नीति कैसे, कब और कितनी अमल में लाई जा सकेगी इसको ले कर आपकी क्या उम्मीदें हैं?

मैं यही कह सकता हूं कि मेरी समझ से सरकार की ओर इस से पूरी गंभीरता से काम होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि अगले 2-3 साल के अंदर इस नीति के कई पहलुओं में बदलाव हमें दिखाई देने लगेगा।

पत्रिका- शिक्षा में ज्यादा जोर वैज्ञानिक सोच विकसित करने पर होगा या फिर परंपराओं पर?

शिक्षा के विभिन्न पहलुओं में अच्छा संतुलन कायम करने की पूरी कोशिश की गई है। साथ ही इनके आपसी तालमेल पर भी उतना ही जोर है।

ऑनलाइन शिक्षा में काम आएगा कोरोना काल का अनुभव

पत्रिका- कोरोना संक्रमण की समस्या आने वाले लंबे समय तक बनी रह सकती है। ऑनलाइन शिक्षा इसमें कितनी कारगर होगी? इसके लिए नई शिक्षा नीति में क्या व्यवस्था है?

नई शिक्षा नीति में जहां तकनीकि के महत्व को पहचाना गया है और इसका अधिकतम लाभ उठाने की व्यवस्था की गई है, वहीं इसके खतरों और चुनौतियों पर भी ध्यान रखा गया है। ऑनलाइन लर्निंग और डिजिटल तकनीक को कोविड से पहले शुरू कर दिया गया था, लेकिन कोरोना के दौरान इनका जम कर उपयोग शुरू हो गया। इस दौरान बहुत से अनुभव हुए हैं। तकनीकि के उपयोग के प्रभाव, सस्ते कंप्यूटर आदि की कम उपलब्धता, शिक्षकों के लिए जरूरी प्रशिक्षण के साथ ही बड़े स्तर पर ऑनलाइन परीक्षा का आयोजन जैसे विभिन्न पहलुओं पर बेहतर समझ विकसित करनी होगी।



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