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सियासत के अजब खेल: राजीव-राजेश थे पक्के यार, अब राहुल-सचिन में तकरार

नई दिल्ली। बागी तेवर अपनाने के बाद से सचिन पायलट दिल्ली एनसीआर में ही जमे थे। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि हमेशा से करीबी माने जाने वाले राहुल गांधी ने उनसे इस दौरान एक बार भी मुलाकत नहीं की? कुछ महीने पहले ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से बाहर होते हुए यहां तक कहा कि एक साल से राहुल ने उन्हें मिलने का समय नहीं दिया।

व्यक्तिगत पसंद तो पीछे छोड़ना पड़ा था

ज्योतिरादित्य भी राहुल के उसी तरह करीबी माने जाते रहे हैं। थोड़ा इतिहास के पन्नों को पलटें तो इन दोनों के ही पिता भी कांग्रेस में ना सिर्फ कद्दावर नेता थे, बल्कि राहुल के पिता राजीव गांधी के उतने ही करीबी भी थे। राहुल की ही तरह राजीव गांधी के सामने भी सीएम की च्वाइस को ले कर ऐसा ही एक मोड़ आया था, जहां उन्हें अपना एक राज्य बचाने के लिए अपनी व्यक्तिगत पसंद तो पीछे छोड़ना पड़ा था।

सचिन और राहुल के रिश्ते की बात और सचिन को मनाने के लिए राहुल की ओर से ताकत नही लगाए जाने का सवाल इसलिए भी अहम हो जाता है, क्योंकि माना जाता है कि विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद राजस्थान में सीएम के तौर पर राहुल की व्यक्तिगत पसंद सचिन ही थे। उसके बाद लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद की कांग्रेस कार्यसमिति की हंगामाखेज ऐतिहासिक बैठक को याद कीजिए।

अशोक गहलोत को आड़े हाथों लिया था

इसमें राहुल ने सबके सामने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को आड़े हाथों लिया था। पुत्रमोह में अपने बेटे वैभव की सीट पर ही प्रचार में डटे रहने का आरोप भी लगाया। लेकिन चंद महीने बीते हैं और आज गहलोत के लिए राहुल ने सचिन का बाहर हो जाना पसंद किया। सूत्र बताते हैं कि राहुल और सोनिया गांधी दोनों ने ही तय कर लिया था कि मुलाकात वे तभी करेंगे जब बात बनने की गुंजाइश हो। सचिन सीएम की कुर्सी से कम पर तैयार नहीं थे और राहुल दोस्ती के लिए एक राज्य में अपनी सरकार गंवाने को राजी नहीं थे।

थोड़ा और पीछे जाएं तो ठीक ऐसा ही एक और वाकया दिखाई देगा। राहुल के सचिन और ज्योतिरादित्य के साथ रिश्ते खानदानी हैं। राजेश्वर प्रसाद सिंह बिधूड़ी को राजीव गांधी ने ही एयर फोर्स छोड़ कर चुनावी मैदान में कूदने को तैयार किया था। एयर फोर्स के इस पायलट को बचपन से लोग राजेश तो बुलाते ही थे, बाद में चुनावी कामयाबी के लिए उन्होंने अपना सरनेम पायलट रख लिया।

ज्योतिरादित्य के तो इस परिवार से तीन पीढ़ी के रिश्ते हैं। जैसी स्थिति राहुल के सामने सचिन को ले कर आई है, ठीक वैसी ही राजीव गांधी के सामने आई थी। राजीव को ना सिर्फ माधवराव पर काफी भरोसा था, बल्कि उन्हें केंद्र में रेलवे और एचआरडी जैसे अहम मंत्रालय भी दिए।

1989 में मध्य प्रदेश के तब के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को लॉटरी मामले में कुर्सी छोड़ने पड़ी। राजीव चाहते थे कि माधव राव सीएम बनें। लेकिन अर्जुन सिंह दबाव बनाने के लिए अपने समर्थक विधायकों को ले कर अपने एक समर्थक के यहां चले गए और उनके दबाव में मोतीलाल वोरा सीएम बने।

कांग्रेस छोड़ कर अपनी पार्टी भी बनाई

बाद में माधव राव ने राजीव के गुजरने के बाद कांग्रेस छोड़ कर अपनी पार्टी भी बनाई और 2001 में विमान हादसे में असमय गुजरने से पहले कांग्रेस में लौटे भी। राजेश पायलट की भी वर्ष 2000 में महज 55 साल की उम्र में हादसे में मौत हो गई और राजनीतिक जानकार कहते हैं कि वे इस हादसे में गुजरे नहीं होते तो पीएम पद के दावेदार होते।



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