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Corona के शिकार होने पर क्यों खत्म हो जाती है सूंघने की क्षमता, जानिए क्या कहती है स्टडी?

नई दिल्ली। इन दिनों पूरी दुनिया में कोरोना वायरस ( coronavirus ) को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। इस महामारी ( COVID-19 ) का अब तक कोई इलाज नहीं मिला है। आलम ये है कि COVID-19 लगातार अपना पैर पसारता जा रहा है। इस बीमारी के जो भी लोग शिकार हो रहे हैं, उनमें सबसे बड़ी समस्या ये सामने आ रही है कि उनकी सूंघने ( Smell ) की क्षमता धीरे-धीरे कम हो रही है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर इस बीमारी में ऐसा क्या है कि जो सूंघने की क्षमता पर सीधा असर डाल रहा है। इसे लेकर लगातार शोध जारी हैं और कई तरह के परिणाम भी सामने आ रहे हैं।

COVID-19 मरीजों में सूंघने की क्षमता हो रही कम

दरअसल, हाल ही में कोरोना के नए लक्षण सामने आए हैं, जिसमें कहा गया है कि इस वायरस से संक्रमित होने वाले कुछ लोगों में सूंघने और गंध ( Covid-19 patients lose their sense of smell) को महसूस करने की क्षमता काफी कम हो गई है। इसकी पुष्टि खुद वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ( WHO ), अमरीका ( America ) समेत कई देशों के स्वास्थ्य अधिकारियों ने की है। चूहों पर किए अध्ययन में इस लक्षण के बारे में पता लगाने की कोशिश की गई है। SARS- COV-2, जो COVID-19 का कारण बनता है कोशिकाओं पर हमला करने के लिए इंसान के शरीर में मौजूद दो प्रोटीनों ( Human Proteins ) का सहारा लेता है। इनमें एक ACE2 है, जबकि दूसरा TMPRSS2 है, जिसका उपयोग वायरस अपनी आनुवंशिक सामग्री को दोहराने के लिए करता है। चूहों ( mice ) पर रिसर्च के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि ये दो प्रोटीन नाक गुहा की कुछ कोशिकाओं द्वारा निर्मित होते हैं, जो चूहों की गंध में योगदान करते हैं।

बॉडी में मौजूद प्रोटीन पर हो रहा ATTACK

दो प्रोटीन की अभिव्यक्ति के स्तर को मापने के लिए पोलैंड के शोधकर्ता राफेल बटोव और उसके सहयोगियों ने पहले विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल किया। उन्होंने पाया कि परिपक्व घ्राण न्यूरॉन्स ACE2 को व्यक्त नहीं करते हैं, जबकि सस्टेनिक्यूलर कोशिकाएं करते हैं। बटोव ने कहा कि COVID-19 रोगियों में सूंघने की क्षमता इसलिए कम हो जाती है, क्योंकि sustentacular कोशिकाएं सूंघने की क्षमता वाले प्रोटीन में रुकावट पैदा करता है और उसकी संवेदना पर भी असर डालता है। शोधतर्ता ने भविष्य के अध्ययनों के लिए कहा है कि यह जरूर जांचना चाहिए कि क्या वायरस कोशिकाओं को न्यूरॉन्स तक पहुंचा सकती हैं, जो SARS-CoV-2 को मस्तिष्क को संक्रमित करने का रास्त प्रदान करता है।

चूहों पर स्टडी

जांच के दौरान शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि बड़ी मात्रा में प्रोटीन युवा लोगों की तुलना में पुराने चूहों में बनता है। ये महत्वपूर्ण निष्कर्ष हैं, क्योंकि सेल में जितने अधिक प्रवेश प्रोटीन होते हैं, वायरस को उसमें प्रवेश करने और संक्रमित करने में आसान होता है। शोध में यह भी कहा गया है कि नाक के उपकला में मौजूद प्रोटीन से पता चल सकता है कि पुराने लोगों की तुलना में युवा लोगों में कोरोना संक्रमित होने की संभावना अधिक है। ऐसे में सवाल ये है कि शोध के दौरान चूहों में जो देखा गया था वह मनुष्यों में भी होता है। ऐसा मालूम होता है कि प्रवेश प्रोटीन में स्तनधारी प्रजातियों के बीच समान अभिव्यक्ति पैटर्न हैं। इसका मतलब ये है कि चूहा मानव स्थिति के लिए उपयुक्त मॉडल है।



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