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कोश्यारी की EC से गुजारिश के बाद उद्धव के सामने 27 मई से पहले एमएलसी बनने की चुनौती?

नई दिल्ली। एक तरफ देश में कोरोना को लेकर हाहाकार मचा है तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र में सियासी सरगर्मी चरम पर है। यह स्थिति 27 मई से पहले सीएम उ़द्धव ठाकरे का विधानसभा या विधान परिषद में से किसी एक का सदस्य बनने की अनिवार्यता की वजह से उत्पन्न हुई है। ऐसा न होने पर उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है। इस बीच राज्यपाल बीएस कोश्यारी ने 9 सीटों पर एमएलसी का चुनाव कराने की गुजारिश कर सियासी गेंद ईसी के पाले में डाल दी है। लेकिन अहम सवाल अब भी वही है, क्या 27 मई से पहले उद्धव विधान परिषद का सदस्य बन पाएंगे?

एमएलसी चुनाव को लेकर EC की बैठक आज

महाराष्ट्र के राज्यपाल बीएस कोश्यारी की ओर से 9 विधान परिषद की सीटों पर चुनाव कराने की सिफारिश के बाद चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर शुक्रवार को बैठक बुलाई है। आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से अमरीका में फंस गए मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा इस बैठक में वीडियो कांफ्रेंस के जरिए सम्मिलित होंगे। बैठक में इस मुद्दे पर फैसला लिया जाएगा कि 27 मई से पहले एमएलसी का चुनाव कराना संभव है या नहीं।

ईसी के पास क्या हैं विकल्प

राज्यपाल कोश्यारी की ओर से चुनाव को लेकर गुजारिश के बाद ईसी के पास तीन विकल्प हैं। पहला यह कि वो नियमों के अनुसार 9 एमएलसी सीटों पर चुनाव 27 मई से पहले संपन्न कराए। दूसरा यह कि दक्षिण कोरिया में कोरोना वायरस आउट ब्रेक की वजह से राष्ट्रपति का चुनाव स्थगित है। ईसी को इस मामले में यह देखना होगा कि दक्षिण कोरिया के चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर कौन सा रास्ता अख्तियार किया है। क्या दक्षिण कोरियाई मॉडल पर अमल कराना चुनाव आयोग के लिए संभव है? तीसरा और अंतिम विकल्प यह है कि चुनाव आयोग पुरानी परंपराओं का अध्ययन कर उसी में से कोई रास्ता निकाले।

कोश्यारी ने क्यों डाला ईसी के पाले में गेंद

महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम की बात करें तो जाहिर है कि राज्यपाल बीएस कोश्यारी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को राज्यपाल कोटे से विधान परिषद की सदस्यता देने के इच्छुक नहीं हैं। राज्य मंत्रिमंडल प्रस्ताव भेजकर राज्यपाल से उन्हें राज्यपाल कोटे से विधान परिषद में भेजने की मांग कर चुका है लेकिन राज्यपाल ने अब तक इस प्रस्ताव पर विचार नहीं किया है। यहां तक कि महाविकास आघाड़ी सरकार में शामिल तीनों दलों के प्रतिनिधि राज्यपाल से यह मांग कर चुके हैं।

लेकिन राज्यपाल कोटे से महाराष्ट्र विधान परिषद में मनोनयन का फैसला लटकने पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मंगलवार रात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन कर मामले में दखल देने की गुहार लगाई थी। उन्होंने पीएम मोदी से कहा था कि ऐसे समय में जब महाराष्ट्र कोरोना महामारी से जूझ रहा है राजनीतिक अस्थिरता ठीक नहीं है।

सियासी हालात

राज्यपाल की ओर से स्पष्ट किया गया है कि चूंकि राज्य के मुख्य्मंत्री उद्धव ठाकरे विधानपरिषद और विधानसभा किसी के सदस्य नहीं हैं इसलिए पद पर बने रहने के लिए उन्हें 28 मई से पहले दोनों में से किसी से निर्वाचित होना होगा। वहीं महाराष्ट्र कैबिनेट ने अपने नए प्रस्ताव में कहा है कि कोरोना संकट में राजनीतिक अस्थिरता नहीं आनी चाहिए। इसके लिए विधान परिषद की फ‍िलहाल एक खाली सीट पर उद्धव को मनोनीत करने की सिफारिश की जाए।

संविधान में क्या है प्रावधान

अनुच्छेद 171 :

संविधान का आर्टिकल 171 राज्य विधायिका की संरचना के बारे में बताता है। संविधान के आर्टिकल 171(3)(e) के मुताबिक़ राज्यपाल को विधान परिषद के कुछ सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार होता है। आर्टिकल 171(5) के मुताबिक़ ऐसे किसी भी शख़्स जिनके पास साहित्य, कला, विज्ञान, सहभागिता आंदोलन या सामाजिक कार्यों में विशेष ज्ञान हो या इनका ज़मीनी अनुभव हो, तो उसे राज्यपाल विधान परिषद का सदस्य मनोनीत कर सकते हैं।

अनुच्छेद 163 (1) :

संविधान के अनुच्छेद 163 (1) के अनुसार मंत्रिमंडल की सिफ़ारिश के अनुसार राज्यपाल को काम करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने रामेश्वर प्रसाद समेत अनेक मामलों में इस संवैधानिक व्यवस्था पर अपनी मुहर लगाई है। महाराष्ट्र के राज्यपाल यदि संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार कार्य नहीं कर रहे तो फिर उद्धव ठाकरे के पास सीमित विकल्प हैं। त्यागपत्र देने के बाद फिर से मुख्यमंत्री बनने के लिए वे फिर से राज्यपाल के फ़ैसले पर आश्रित हो जाएंगे।

एसआर चौधरी वर्सेस स्टेट ऑफ पंजाब

सुप्रीम कोर्ट के एसआर चौधरी वर्सेस स्टेट ऑफ़ पंजाब मामले में 2001 के फ़ैसले को आधार मानकर राज्यपाल उद्धव ठाकरे को फिर से मुख्यमंत्री बनाने से इनकार कर सकते हैं।

अनुछेद 164 :

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश लाहोटी की बेंच के फ़ैसले में जस्टिस आनंद ने लिखा था कोई भी मंत्री बग़ैर विधायक बने 6 माह बाद फिर से मंत्री नहीं बन सकता। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ऐसा करना संविधान के प्रावधानों का घोर हनन है। सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले और संविधान के अनुछेद 164 (4) के अनुसार उद्धव ठाकरे भी 6 महीने बाद विधायक चुने हुए बग़ैर दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ नहीं ले सकते।

बता दें कि इस सियासी असमंजस की स्थिति से उबरने के लिए उद्धव ठाकरे के पास दो ही विकल्प हैं, पहला उन्हें विधान परिषद पद पर मनोनयन मिले। दूसरा उनके त्यागपत्र के बाद कोई अन्य व्यक्ति उनकी जगह नए मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करे।

राज्यपाल उद्धव को मनोनीत नहीं कर सकते

हाल ही में महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने दावा किया था कि चुनाव आयोग के अनुसार जिस रिक्त सीट का कार्यकाल 6 महीने से कम है, वहां समय से पहले चुनाव नहीं कराए जा सकते। इसके तहत महज एक महीने से भी कम का समय होने के कारण राज्यपाल नियमतः उद्धव ठाकरे को विधान परिषद सदस्य मनोनीत नहीं कर सकते।



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