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आर्टिकल 370 के बाद आर्टिकल 371 की हो रही है खूब चर्चा, आखिर क्या खास है इस अनुच्छेद में

नई दिल्ली। पिछले महीने केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीन कर उसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया था। सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को खत्म करने का ऐतिहासिक फैसला लिया था। आर्टिकल 370 के हटने के बाद पिछले कई दिनों आर्टिकल 371 भी काफी सुर्खियों में है। हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह ने आर्टिकल 371 को लेकर एक बयान भी दिया था, जिसके बाद से सभी के दिमाग में ये सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर अब ये आर्टिकल 371 का क्या लफड़ा है?

क्या है आर्टिकल 371

ऐसे में हम आपको बताते हैं कि आर्टिकल 371 आखिर है क्या और क्यों ये इन दिनों सुर्खियों में बना हुआ है? दरअसल, आर्टिकल 371 भी देश के कई राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देता है। इसमें ज्यादातर नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देने का प्रावधान है। इन दिनों आर्टिकल 371 इसलिए सुर्खियों में हैं, क्योंकि ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि केंद्र सरकार आर्टिकल 370 के बाद आर्टिकल 371 को भी खत्म करने का मन बना रही है, लेकिन हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह ने ये कह दिया था कि सरकार ऐसा कोई काम नहीं करने जा रही है, जिससे आर्टिकल 371 पर कोई खतरा आए।

 

आर्टिकल 371 में किन राज्यों को मिला हुआ है विशेष राज्य का दर्जा

- आर्टिकल 371 के अंदर 10 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है, जिसमें सभी के लिए खास प्रावधान हैं। आर्टिकल 371 में नॉर्थ-ईस्ट के दक्षिण भारत के राज्यों को शामिल किया गया है। मुख्य तौर का आर्टिकल 371 तो महाराष्ट्र और गुजरात को विशेष प्रावधान देता है। यह आर्टिकल देश के राष्ट्रपति को महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र के साथ ही गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ में अलग से विकास बोर्ड बनाने की ताकत देता है। हर बोर्ड को अपने काम के बारे में हर साल विधानसभा को बताना भी होगा। पूरे राज्य की ज़रूरत को देखते हुए इन विशेष क्षेत्रों में पैसे के आवंटन की ताकत देता है। आसान भाषा में कहें तो इस क्षेत्र के लोगों के लिए अलग से आरक्षण दिया जा सकता है।

आर्टिकल 371 में आने वाले राज्य और उनके विशेष प्रावधान

क्रमांक संख्या आर्टिकल राज्य प्रावधान
1.
371 (A) नागालैंड

- नागालैंड में नगाओं से जुड़ा धार्मिक और सामाजिक, पारंपरिक, दीवानी और फौजदारी से संबंधित संसद का कोई कानून तब तक लागू नहीं हो सकता, जब तक यहां कि विधानसभा उसे पास ना कर दे।

- इसके अलावा ये आर्टिकल नगालैंड के जिले त्युएनसांग के प्रशासन के लिए राज्यपाल को विशेष अधिकार देता है, जिसके तहत राज्यपाल चाहे तो त्युएनसांग का प्रशासन अपने हाथ में रख सकता है, राज्य के लिए जो पैसे केंद्र सरकार ने भेजे हैं, उसका एक हिस्सा त्युएनसांग के लिए ले सकता है।

- बिना राज्यपाल के आदेश के नगालैंड विधानसभा का कोई भी कानून त्युएनसांग जिले पर लागू नहीं हो सकता है। इस जिले से जुड़े किसी मामले का अंतिम फैसला राज्यपाल के हाथ में होता है।

2. 371 (B) असम

- इस आर्टिकल में असम की जनजाति के मुद्दों और उनकी परंपराओं को सुरक्षित रखने के लिए विशेष प्रावधान दिए गए हैं। इस आर्टिकल के तहत राष्ट्रपति के पास ये अधिकार है कि वो चाहें तो राज्य की विधानसभा में एक समिति का गठन कर सकता हैं, जिसमें असम के जनजातीय इलाकों से चुने गए लोग शामिल होंगे। राष्ट्रपति विधानसभा में इस समिति को काम करने के लिए विशेष प्रावधान दे सकते हैं।

3. 371 (C) मणिपुर

असम की तरह मिलाजुला प्रावधान मणिपुर को भी मिला हुआ है। इस आर्टिकल के तहत राष्ट्रपति के पास ये अधिकार है कि वो राज्य की विधानसभा में मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में आने वाली विधानसभा के सदस्यों को मिलाकर एक समिति बनाए। ये समिति राज्य सरकार को इन पहाड़ी इलाकों के लिए काम करने में मदद करेगी।

- ये समिति कैसा काम कर रही है और क्या उसकी योजनाएं हैं, इन सभी पर नजर रखने की जिम्मदेरा राज्यपाल की होगी। पहाड़ी क्षेत्रों की विधानसभाएं वो विधानसभाएं होंगी, जिन्हें राष्ट्रपति पहाड़ी विधानसभाएं घोषित करेंगे।


4. 371 (D) आंध्र प्रदेश और तेलंगाना

- 371 (डी) में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के संबंध में दोनों राज्यों के स्थानीय लोगों के लिए केंद्र की नौकरी, राज्य की नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में विशेष प्रबंध कर सकता है। यानी कि आरक्षण दे सकता है।

- आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की इन ज़रूरतों को पूरा करने के लिए राष्ट्रपति राज्य सरकारों से राज्य के अलग-अलग हिस्सों में नौकरियां निकालने के लिए कह सकता है या शिक्षण संस्थानों में पद बढ़ाने के लिए कह सकता है।
- तेलंगाना से बंटवारे के पहले के आंध्रप्रदेश का नक्शा। आर्टिकल में दोनों राज्यों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।

5. 371 (E) आंध्र प्रदेश इस आर्टिकल में भी आंध्र प्रदेश का जिक्र है। इस आर्टिकल के तहत संसद कानून बनाकर राज्य में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना कर सकती है।
6. 371 (F) सिक्किम

- ये आर्टिकल फिर से पूर्वोत्तर के राज्य सिक्किम का रूख करता है। इसमें प्रावधान है कि राज्य विधानसभा में कम से कम 30 सदस्य होंगे और लोकसभा का सिर्फ एक सांसद होगा।

- संसद सिक्किम की विधानसभा सीटों का परिसीमन कर सकेगी, ताकि अलग-अलग वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व विधानसभा में हो सके। मकसद ये है कि विधानसभा में सिक्किम की सभी जातियों-जनजातियों का प्रतिनिधित्व हो सके।

- वहीं अगर राष्ट्रपति सिक्किम को लेकर किसी तरह के कानून में बदलाव करता है, तो देश की किसी भी कोर्ट में उसे चुनौती नहीं दी जा सकती।

7. 371 ( G)  

- आर्टिकल 371 (G) में मिजोरम को विशेष प्रावधान दिए गए हैं, जो काफी हद तक नागालैंड के प्रावधानों से मिलते हैं। मिज़ोरम में लोगों की धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं से जुड़ा, लोगों का पुराना कानून व दीवानी और फौजदारी मामले से जुड़ा संसद का कोई कानून यहां लागू नहीं होता।

- जमीन की खरीद-बिक्री और ज़मीन के ट्रांसफर का कानून लागू नहीं होगा। मतलब कि यहां के लोग किसी बाहरी को ज़मीन नहीं बेच सकते हैं, लेकिन अगर ज़मीन राज्य सरकार की है, तो निजी उद्योग वहां पर ज़मीन लेकर उद्योग लगा सकते हैं। मिजोरम राज्य की विधानसभा में कम से कम 40 सदस्य होंगे।

8. 371 (H) अरुणाचल प्रदेश

पूर्वोत्तर के इस राज्य में लॉ एंड ऑर्डर की जिम्मेदारी राज्यपाल के पास होती है। राज्यपाल के पास अधिकार होता है कि वो राज्य की मंत्रिपरिषद की सलाह से कोई भी फैसला ले सकता है।

- अगर राज्यपाल ने खुद से कोई फैसला कर भी लिया है तो उसे किसी भी कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकेगा।अगर राज्यपाल को लगता है कि राज्य की कानून-व्यवस्था संभालने का जिम्मा अब राज्यपाल का नहीं है, तो राज्यपाल राष्ट्रपति को इस संबंध में लिख सकता है और राष्ट्रपति तत्काल प्रभाव से इस व्यवस्था को रद्द कर सकता है।

9. 371 (I) गोवा

इस आर्टिकल में गोवा को विशेष प्रावधान दिया गया है, जिसमें गोवा विधानसभा में कम से कम 30 सदस्यों की संख्या का प्रावधान है।

10. 371 (J)

हैदराबाद-कर्नाटक

- राष्ट्रपति राज्यपाल को निर्देश दे सकता है कि क्षेत्र के लिए एक विकास बोर्ड बने और इसके काम का लेखा-जोखा हर साल राज्य की विधानसभा में पेश किया जाए। इसके अलावा पूरे राज्य के लिए आए फंड में से हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए विशेष तौर पर फंड का आवंटन किया जाए।

कर्नाटक के कुछ हिस्सों में रहने वाले लोगों को आरक्षण की विेशेष सुविधा दी गई है। पूरे राज्य की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लोगों को सरकारी नौकरियों, शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण में समान अवसर देने के लिए विशेष प्रबंध है।



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