JP से लेकर Modi तक हर सियासी पटकथा के केंद्र में रहे अरुण जेटली
नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री और मोदी सरकार के क्राइसिस शूटर अरुण जेटली को शनिवार को निधन हो गया। उनके निधन के बाद से देश भर में शोक की लहर है। आज उनका अंतिम संस्कार निगम बोध घाट पर होगा।
सियासी प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठकर सभी दलों के राजनेताओं ने उनके निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त की है। सभी ने माना कि अरुण सियासी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व में शुमार किए जाएंगे।
अब मैं क्या करूं
हकीकत भी यही है। पिछले 45 वर्षों से वह भारतीय राजनीति में सक्रिय थे। एक मीडिया कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि मैं जब स्टूडेंट था तो टॉप किया। डूसू का अध्यक्ष चुना गया। वकालत में शीर्ष पायदान पर पहुंचा। राजनीति में आया तो शिखर हूं। अब क्या बचा है। कभी-कभी मैं, यह सोचता रहता हूं कि अब मुझे क्या करना चाहिए।
राजनीति के हर दांव-पेंच में माहिर
दरअसल, अरुण जेटली जनता पार्टी से लेकर भाजपा तक के सफर में हर बदलाव की पटकथा में शामिल रहे। वह इंदिरा गांधी के आपाताकाल के खिलाफ समग्र आंदोलन के जनक व लोकनायक जयप्रकाश नारायण, वीपी सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्ता परिवर्तन में पर्दे के पीछे अहम भूमिका में सक्रिय रहे।
चुनावी जंग, संसद की रणनीति, अदालत के दांव पेंच के साथ खेल प्रशासन में अहम छाप छोड़ने वाले जेटली मीडिया और उद्योग जगत के भी हमेशा छाए रहे।
कांग्रेस की पराजय के पटकथा लेखक
मोदी के क्राइसिस शूटर अरुण जेटली के व्यक्तित्व का सबसे अहम पहलू यह था कि विरोधी दल कांग्रेस के रणनीतिकार अगर किसी से भयभीत रहते थे, तो वह जेटली थे। जेटली एकमात्र राजनेता थे जो 1977 से लेकर 2019 तक की कांग्रेस के सभी पराजय की पटकथा में शामिल रहे।
कांग्रेस को पटखनी दे 1974 में बने डूसू अध्यक्ष
1974 में जेटली अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बैनर तले दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव में कांग्रेस की रणनीति को पटखनी देकर अध्यक्ष बने।
इंदिरा के राज में 19 महीनों तक तिहाड़ जेल में रहे जेटली
जब 1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया तो उसका विरोध जेटली ने किया। बता दें कि आपातकाल की घोषणा इंदिरा गांधी ने मध्यरात्रि में की थी। उस समय जेटली दिल्ली के नारायणा में अपने घर में सो रहे।
खबर मिलते ही वो घर के पीछे के दरवाजे से निकल कर दिल्ली विश्वविद्यालय में लगभग दो सौ छात्रों के साथ इंदिरा गांधी का पुतला जलाकर गिरफ्तार हुए। वह 19 महीने तक जेल में रहे।
तिहाड़ जेल में तत्कालीन जनसंघ के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी आदि का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनको लगा कि उनकी दिशा राजनीति की तरफ ही जा रही है।
जब जेपी चाहते हुए जेटली को नहीं लड़ा पाए चुनाव
आपाताकाल के बाद 1977 के ऐतिहासिक चुनाव में जयप्रकाश नारायण ने लोकतांत्रिक युवा मोर्चा बनाकर उसकी कमान जेटली को सौंपी। इस तरह वे चुनावी रणनीति का हिस्सा बने जिसमें कांग्रेस को पहली पराजय मिली।
जेपी उनको चुनाव भी लड़ाना चाहते थे, लेकिन तब उनकी उम्र 25 साल से कम थी। जेटली विद्यार्थी परिषद से 1980 में भाजपा में आए और 1991 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने।
वीपी सिंह ने बनाया यंगेस्ट सॉलीसीटर जनरल
जेटली 1989 में कांग्रेस की दूसरी पराजय की रणनीति में भी पर्दे के पीछे रहे। यही वजह है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने 1990 में उनको अतिरिक्त सोलीसीटर जनरल नियुक्त किया। भाजपा में रहते हुए भी वह वीपी सिंह के बेहद करीब रहे।
अटल-आडवाणी के दौर में थिंक टैंक का हिस्सा बने
भाजपा से जुड़ने के बाद अरुण जेटली लालकृष्ण आडवाणी की केंद्रीय टीम में जब गोविंदाचार्य, प्रमोद महाजन और वेंकैया नायडू जैसे नेता राष्ट्रीय फलक पर उभर रहे थे, तब जेटली पार्टी के थिंक टैंक हिस्सा रहे।
1996 के चुनाव में कांग्रेस की तीसरी पराजय की रणनीति का हिस्सा बने। वे वाजपेयी सरकार में मंत्री बने। इसके बाद 1998 व 1999 में भाजपा की जीत व कांग्रेस की लगातार हार में हिस्सेदार रहे।
वह भाजपा में कानूनी पहलुओं के साथ गठबंधन की राजनीति, मीडिया प्रबंधन, घोषणापत्र तैयारी जैसे कामों को संभालते रहे।
इस बीच कई राज्यों के चुनाव में वे प्रमुख रणनीतिकार बन कर उभरे। 2004 में भाजपा की पराजय के बाद भाजपा में नए नेतृत्व को आगे लाया गया। तब जेटली को राज्यसभा व सुषमा स्वराज को लोकसभा में नेता बनाया गया।
अन्ना आंदोलन के बाद जेटली का नाम पीएम पद के दावेदारों में आने लगा था। लेकिन उन्होंने मोदी के उभार को भांपकर खुद को पीछे कर लिया।
2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने में पार्टी के भीतर जेटली ने सबसे अहम भूमिका निभाई। इस घटना के बाद वो मोदी के सबसे चहेते और भरोसेमंद व्यक्ति बन गए।
वह चुनावी रणनीति के केंद्र में भी थे। भाजपा की जीत और कांग्रेस की एक और हार में जेटली एक बार फिर सबसे अहम रहे। 2019 में खराब स्वास्थ्य के बावजूद वह भाजपा मुख्यालय में रणनीतिक टीम के साथ मौजूद रहते थे।
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